PM मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और चीफ जस्टिस की जॉइंट कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, केंद्रीय कानून मंत्री और सभी 25 हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी मौजूद थे। कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हुआ। इससे पहले यह कार्यक्रम 2016 में हुआ था। इस कार्यक्रम में हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी समेत कई राज्यों के सीएम भी मौजूद थे।
इस दौरान PM ने कहा- हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। देश में 3.5 लाख कैदी अंडर ट्रायल हैं, इनके मसले को निपटाने पर जोर दिया जाए। मैं सभी मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के जजों से इस पर ध्यान देने की अपील करता हूं।
इससे पहले CJI एनवी रमना ने कहा- न्याय का मंदिर होने के नाते अदालत को लोगों का स्वागत करना चाहिए, कोर्ट की अपेक्षित गरिमा और आभा होनी चाहिए। पब्लिक इंटरेस्ट याचिका अब पर्सनल इंटरेस्ट के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। यह अफसरों को धमकाने का जरिया बन गई हैं। PIL राजनीतिक और कॉर्पोरेट विरोधियों के खिलाफ एक टूल बन गया है।
CJI बोले- संविधान में लोकतंत्र के तीनों अंगों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है। अपने कर्तव्यों का पालन करते समय हमें लक्ष्मण रेखा का भी ध्यान रखना चाहिए। सरकारें अदालत के फैसले को बार- बार नजरअंदाज करती हैं, यह हेल्दी डेमोक्रेसी के लिए ठीक नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा आजादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशियरी और एग्जक्यूटिव, दोनों के ही रोल्स और रिसपाॉन्सिबलिटी को निरंतर स्पष्ट किया है। जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है। हम देश में जजों की संख्या को पूरा करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।
हमारे देश में जहां एक ओर ज्यूडिशियरी की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं लेजिस्लेचर नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम और संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोड मैप तैयार करेगा।