शिमला दूरदर्शन में भाई-भतीजावाद का बोलबाला किस कदर है इसका खुलासा प्रदेश हाईकोर्ट में एक कैजुएल कर्मचारी ओवैस खान की याचिका पर प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से दिए फैसलें में हुआ हैं। प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि दूरदर्शन में जिन लोगों ने आडिशन पास किया उनके बजाय जिन्होंने आडिशन तक पास नहीं किया हैं, उन्हें काम दे देना भाई-भतीजा बाद का जीता जागता उदाहरण हैं।
कैजुअल कर्मचारी औवेस खान ने दूरदर्शन शिमला में एंकर, प्रोग्राम प्रेजेंटेटर के लिए आडिशन दिया था। दूरदर्शन ने उसे 16 मई 2013 को आडिशन में पास कर दिया और 23 मई 2013 को ही उसे कांट्रेक्ट की चिटठी भी दे दी। खान ने 14 अगस्त 2014 तक 40 के करीब प्रोग्राम दूरदर्शन पर बतौर एंकर पेश किए और किसी ने भी उनके काम पर असंतोष जाहिर नहीं किया। लेकिन इसके बाद दूरदर्शन केअधिकारियों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया। जबकि, उन लोगों को काम दे दिया गया जिन्होंने आडिशन भी पास नहीं किया था।
इस पर खान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी और अदालत से आग्रह किया कि दूरदर्शन के कामकाज की जांच की जाए और दोषी पाए जाने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
ओवैस खान ने जब दूरदर्शन में RTI के आधार पर जानकारी मांगी तो विशेषज्ञों ने असंतोष जाहिर किया हैं। अदालत ने आब्जर्व किया कि याचिकाकर्ता सबको जानता हैं ऐसे में ऐसा जवाब देना आरटीआई के प्रावधानों से जानबूझ कर अनजान होना है या याचिकाकर्ता को जानबूझ कर गुमराह करना हैं।
खान ने आरटीआई में भी ये भी पूछा था कि कैजुअल कर्मचारियों को लेकर प्रसार भारती के क्या नियम और रेगुलेशन हैं। जिस पर दूरदर्शन ने जवाब दिया कि इस बावत कोई कायदा कानून नहीं है। अदालत ने कहा कि सरकार कानून बनाने के लिए बाध्य हैं।
जस्टिस त्रिलोक चौहान ने अपने आदेश में आब्जर्व किया जब केस की आखिरी सुनवाई थी तो दूरदर्शन की ओर से कर्मचारी धारा सरस्वती ने माना कि उन्होंने याचिकाकर्ता की आरटीआई का जवाब सही भाषा में नहीं दिया था।बता दें कि, शिमला दूरदर्शन में अनिमियतताओं को लेकर CBI भी रेड डाल चुकी है।