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बिलासपुर में 1,06,968 बच्चों को खिलाई जाएगी कृमि मुक्ति दवा: DC

सुनील ठाकुर, बिलासपुर |

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस पर 1 नवंबर को बिलासपुर जिला के 1,06968 बच्चों को पेट के कीड़े मारने की दवा खिलाई जाएगी। जिसमे 1 से 5 वर्ष के 22287 बच्चों अलबेंडाजोल के साथ विटामिन ए और 6 से 19 वर्ष के 84681 बच्चों को अलबेंडाजोल की दवाई खिलाई जाएगी। यह जानकारी उपायुक्त बिलासपुर राजेश्वर गोयल ने जिला स्तरीय टास्क फोर्स की बैठक की अध्यक्षता करते हुए दी। उन्होंने बताया कि जो बच्चे 1 नवम्बर को दवाई खाने से वंचित रह जाएंगे उन्हें 7 नवम्बर को दवाई खिलाई जाएगी ताकि जिला में शत्प्रतिशत बच्चों को कवर किया जा सके।

उन्होंने कहा कि एल्बेंडाजॉल एक सुरक्षित व असरदार दवा है जो एक से 19 वर्ष के बच्चों को स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को दी जाएगी। इसके अतिरिक्त आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से झुग्गी-झोंपडियों में जाकर प्रवासियों को एल्बेंडाजोल दवा दी जाएगी, ताकि वह भी स्वस्थ बन सकें। उन्होंने उपनिदेशक उच्च शिक्षा तथा प्रारम्भिक शिक्षा को निर्देश दिए कि कोई भी बच्चा दवाई खाने से वंचित न रहे इसके लिए जिला के समस्त सरकारी, नीजि, मान्यता प्राप्त स्कूल तथा कालेज, व्यवसायिक, तकनीकी संस्थानों की सूची उपलब्ध करवाना सुनिश्चित करें।

डीसी ने बताया कि जिला के विभिन्न सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ आंगनबाड़ी केंद्रों में एक वर्ष से लेकर 19 वर्ष तक के बच्चों व युवाओं को यह दवा संस्थान के अध्यापकों, आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं के सहयोग व निगरानी में खिलाई जाएगी। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए कि दवाई खिलाने से पूर्व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और अघ्यापकों को पूर्ण रूप प्रशिक्षित किया जाए ताकि बच्चों को प्रशिक्षित आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं तथा अध्यापकों की देखरेख में सुरक्षित दवाई पिलाई जा सके।

इस अवसर पर सीएमओं डा. प्रकाश दरोच ने बताया कि बच्चों के पेट में कृमि संक्रमण के कारण उनके शारीरिक और दिमागी विकास में बाधा आती है जिससे कुपोषण और खून की कमी (एनीमिया) हो जाती है। उन्होंने बताया कि पेट के कीड़े मारने के लिए कृमि नियंत्रण की दवा (एल्बेंडाजॉल) नियमित तौर पर लेने से जहां शरीर में पोषण का स्तर बेहतर होता है तो वहीं बच्चे की रोग प्रतिशोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त न केवल बच्चे की कार्य क्षमता में सुधार आता है बल्कि वातावरण में कृमि की संख्या कम होने से इसका लाभ समुदाय के अन्य सदस्यों को भी मिलता है।