हिमाचल प्रदेश में रिटायर हो चुके बुजुर्ग शिक्षक ने अपना हक हासिल करने के लिए 23 वर्षों तक जंग लड़ी और जब यह जंग जीती और अब जब लाभ देने की बारी आई तब उन्हें शिक्षा विभाग तंग कर रहा है। यह कहानी हिमाचल प्रदेश के मंडी के 83 साल के देवी रूप शर्मा की है। इन्हें वित्तीय लाभ देने के आदेश कोर्ट ने तो जारी कर दिए हैं। लेकिन इन आदेशों का शिक्षा विभाग के अधिकारी मजाक बनाए बैठे हैं।
देवी रूप शर्मा 1956 में बतौर पीटीआई भर्ती हुए और 37 साल की सेवा के बाद 1994 में इसी पद से रिटायर भी हुए। सरकार ने इस पद के लिए प्रमोशन का कोई प्रावधान नहीं कर रखा था। शिक्षक रहते ही देवी रूप शर्मा सहित इस वर्ग के अन्य शिक्षकों ने अपने हक की लड़ाई लड़ना शुरू किया।
प्रदेश सरकार ने अप्रैल 1999 को आदेश जारी किए कि जिन शिक्षकों की सेवा 20 वर्ष से अधिक हो जाएगी उन्हें दो वेतन वृद्धियों का लाभ दिया जाएगा। सरकार के इस आदेश के बाद रिटायर हो चुके देवी रूप शर्मा सहित अन्य शिक्षक कोर्ट की शरण में चले गए और रिटायर हो चुके शिक्षकों पर भी इन आदेशों को लागू करवाने की गुहार लगाई।
हाईकोर्ट और फिर ट्रिब्यूनल कोर्ट ने रिटायर शिक्षकों के हक में फैसला सुनाते हुए शिक्षा विभाग को तीन महीनों के भीतर मामला सुलझाने के आदेश दिए। मई 2017 को कोर्ट ने यह आदेश सुनाया था, लेकिन 2018 बीतने को आ गया और अभी तक इन्हें इनका हक नहीं मिल पाया है। 83 वर्षीय देवी रूप शर्मा बताते हैं कि विभाग के अधिकारी उन्हें एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय जाने का फरमान सुनाकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, लेकिन सुनवाई कोई भी नहीं कर रहा है।
देवी रूप शर्मा ने कोर्ट के आदेश के बाद अपना हक पाने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल तक को खत लिखे। वहां से भी शिक्षा विभाग को मामला सुलझाने के आदेश जारी हुए, लेकिन शिक्षा विभाग इस मामले पर कोई संज्ञान नहीं ले रहा है। देवी रूप शर्मा बताते हैं कि 83 वर्ष की उम्र में बार-बार कार्यालयों के चक्कर काटना उनके लिए संभव नहीं और अब इतना सामर्थ्य भी नहीं बचा। इन्होंने सरकार और शिक्षा विभाग से मांग उठाई है कि जो इनका जायज हक बनता है उसे समय रहते अदा करें।
देवी रूप शर्मा की तरह और भी कई सेवानिवृत कर्मचारी हैं जिनके मामले कोर्ट के आदेशों के बाद भी संबंधित विभागों के पास लंबित पड़े हुए हैं। देवी रूप ही बताते हैं कि उनके साथ हक की लड़ाई लड़ रहे अन्य रिटायर शिक्षक अब इस दुनिया में नहीं है। अब ऐसे में शायद शिक्षा विभाग इनकी उम्र को देखते हुए मामले पर ढील बरत रहा है। लेकिन सवाल यह है कि न्यायलय के आदेशों की भी अगर इसी तरह से अवहेलना होती रहे तो फिर न्याय मिलेगा कहां।