19वीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेज जब शिमला पहुंचे तो शिमला में पानी सबसे बढ़ी समस्या थी। अंग्रेजो ने दूरदर्शिता दिखाते हुए गुम्मा से शिमला के लिए पानी उठाने का निर्णय लिया। 1921 में ब्रिटिश हकूमत ने गुम्मा पम्पिंग योजना को बनाने का कार्य शुरू किया जो कि लगभग अढ़ाई साल में बनकर तैयार हुई। ये योजना एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना थी। जिसमें दो पंप लगाए गए थे जिसका डायनैमिकल हैड 1480 मीटर का है। 1923 में ये योजना बनकर तैयार हो गई और शिमला में पानी पहुंचा।
गुम्मा पम्पिंग पेयजल योजना 25000 लोगों के लिए बनी थी और 20 एमएलडी तक पानी की इसकी क्षमता थी जो आज भी उतनी ही है। हालांकि अब गुम्मा में 6 पंप है। भले ही इस पेयजल की क्षमता 20 एमएलडी पानी की है लेकिन, आजतक कभी भी इस योजना से 20 एमएलडी पानी शिमला नहीं पहुंच पाया। जिसकी वजह जगह-जगह पानी की लीकेज एवं अंग्रेजों के बाद घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल है। सरकारों पर आरोप निम्न स्तर की पाइप लगाने का भी है।
बताते हैं कि अंग्रेजो के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुम्मा तक मशनरी को पहुंचना था। जिसको मज़दूरों की पीठ व खच्चरों द्वारा गुम्मा पहुंचाया गया। 1983 तक ये योजना नगर निगम के अधीन कार्य करती रही उसके बाद इसे सरकार ने अपने अधीन ले लिया।
पूर्व मेयर संजय चौहान बताते हैं कि 2016 में लंबे संघर्ष के बाद निगम ने दोबारा से पम्पिंग स्टेशन आईपीएच से वापिस अपने अधीन ले लिए और उसके बाद पम्पों को बदला गया परिणामस्वरूप अब शिमला में 50 एमएलडी से ज्यादा पानी गुम्मा गिरी और अन्य छोटी योजनाओं से पहुंच रहा है। बावजूद इसके नगर निगम शिमला लोगों को तीसरे दिन पानी दे रहा है।