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बिलासपुर में दिखी लोक कला और जनजातीय संस्कृति की झलक

सुनिल ठाकुर, बिलासपुर |

लोक संगीत और नृत्य जनजातीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। जनजातीय लोग मौसम के अनुसार खुले स्थानों में गाना और नृत्य करके आनन्दित होकर अपने भाव प्रकट करते है। ओडिसा में जनजातीय समुदाय द्वारा किया जाने वाला पाईका नृत्य लोकप्रिय नृत्य है। इसमें लोग अपने-अपने प्रोप का विधिवत अनुष्ठान करके युद्ध की प्रक्रिया व आत्मरक्षा की विभिन्न भाव-भंगिमाओं का प्रभावी प्रदर्शन करके ना केवल दर्शकों को स्तब्ध कर रहे हैं अपितु अपनी प्राचीन लोक कला का भी बाखूवी प्रदर्शन करके खूब तालियां बटोर रहे है।

यह मनमोहक प्रस्तुतियां लोगों को बिलासपुर के लूहणू मैदान में आयोजित जनजातिय उत्सव में देखने को मिल रही है। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के पांथी नृत्य में लोक कलाकार दु्रत गति से बजते साजों की ताल पर भरपूर ऊर्जा का प्रयोग करके थिरकते यूं प्रतीत होते हैं मानों धरा को हिलाने के लिए प्रयासरत हों। कलाकारों की भाव-भंगिमाएं तथा नृत्य की एकरूपता दर्शकों को रोमांचित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

जम्मू व कश्मीर के गोजुरी नृत्य में काले परिधानों में सुसज्जित नृत्यांगनाएं यूं झूमती हुई प्रतीत होती हैं मानों स्वर्ग से अपसराएं धरती पर उतर आई हों। गायन नृत्य व वादन का सुन्दर सामजस्य जहां दर्शकों को दुर्गम क्षेत्र का आभास दिलाता है वहीं नृत्यागंनाओं की भाव-भंगिमाएं अनायास ही कश्मीर की वादियों की मनोहरी कल्नाओं को साकार कर जाती है। कश्मीर का ही नृत्य आडिणी दा पल्ला, प्रदेशियां दा अल्हा, एका-एक दर्शकों को भी गुनगुनाने और झूमने पर विवश कर जाता है।

कश्मीर की नैर्सिग सुन्दरता और मधुर संगीत की धुन व ताल पर नृत्य करती नृत्यांगनाए कुछ इस तरह से अपने हृदय की भावनाओं को प्रकट करती हैं कि दर्शक वाह-वाह किए बिना नहीं रह पाते।

लोगों के विशेष आकर्षण का केन्द्र बने गुजरात के लोक नर्तक अपने नृत्य की वशिष्ट शैली से भरपूर तालियां बटोर रहे हैं और बार-बार सिद्धी धमाल व सिद्धी गोमा नृत्य को देखना चाह रहे है। कलाकारों की मुखमुद्राएं थिरकते शरीर के हर अंग से ताल, लय भाव का सुन्दर मिश्रण देखने को मिल रहा हैं।

मध्यप्रदेश का जवारा और नोरथा तथा कश्मीर के वरिष्ठ कलाकारों का धमाली नृत्य और ओडिसा का झूमर नृत्य जहां लोगों में पूजा अर्चना के भाव का सुन्दर सम्प्रेषण कर रहे हैं वहीं लोक शैली का सुन्दर प्रतिबिम्व भी बने है। जनजातिय उत्सव में भाग ले रहे विभिन्न राज्यों के कलाकारों द्वारा निरन्तर जारी नृत्य प्रस्तुतियां हर सांझ दर्शकों को लूहणू के ऐतिहासिक मैदान में बरबस अपनी ओर खींच रही है।