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हिमाचल के इस गांव में छोटी सी चिंगारी मचा सकती है तबाही का मंजर

समाचार फर्स्ट |

पुरातन शैली के बेजोड़ नमूने से बने जाणा गांव में कभी भी आग की छोटी सी चिंगारी तबाही का मंजर पेश कर सकती है। यहां लकड़ियों से बने हुए घर आपस में पूरी तरह से सटे हुए हैं, साथ ही लोगों ने घरों में घास और लकड़ियां भी एकत्र करके रखी हुई हैं। ऐसे में यहां के लोगों ने अपने घरों को एक तरह से लाक्षागृह बनाकर रखा है। लिहाजा, पुरातन संस्कृति और पुरातन खाद्य सामग्री के लिए मशहूर जाणा गांव में लापरवाही की एक छोटी सी चिंगारी कभी भी कहर बरपा सकती है।

कुल्लू में अधिकतर आग की घटनाएं सर्द मौसम में होती रही हैं। बंजार, सैंज और उझी घाटी आग के निशाने पर रहते हैं। जाणा के बाशिंदों ने भी अपने घरों को पूरी तरह से घास और लकड़ियों के भंडार में तबदील कर रखा है। दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण कई गांवों में अभी तक सड़क नहीं पहुंची है। लिहाजा, आग भड़क जाने से उस पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है। चंद क्षणों में ही कई घर स्वाह हो जाते हैं। दूसरी तरफ गांव के एक घर में आग लगने से अन्य घरों पर ही खतरा मंडरा जाता है।

सहूलियत के लिए घरों में रखते हैं लकड़ियां और घास

बर्फबारी के कारण घास और लकड़ियों को सहूलियतों के हिसाब से घरों में ही रखते हैं। सावधानी तो पूरी बरती जाती है लेकिन कई बार आग लगने से उस पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है। घाटी के भुट्ठी, भल्याणी, त्यून, समालंग, भूमतीर, मड़घन, थाच, माशणा, फलियाणी, समेरग, कणौन, खारगा, डिंगडिंगी और जोंगा बुआई इत्यादि गांवों के लोग भी अपने घरों में घास और लकड़ियों को इकट्ठा करके रखते हैं।