आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन ने सीटू के बैनर तले प्रदेश सचिवालय का घेराव किया। इस दौरान मोदी सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। इस दौरान पूरे प्रदेश से हज़ारों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सचिवालय पर "घेरा डालो-डेरा डालो" में भाग लिया। प्रदेश के लगभग उन्नीस हज़ार आंगनबाड़ी केंद्र आज बंद रहें। 38 हज़ार आंगनबाड़ी कर्मी हड़ताल पर रहें।
यूनियन का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार समेकित बाल विकास योजना को खत्म करने की साजिश रच रही है। मोदी सरकार ने आंगनबाड़ी के बजट को पिछले चार वर्षों में बीस हज़ार करोड़ से घटाकर लगभग आधा कर दिया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दायर करके आंगनबाड़ी केंद्रों को मिलने वाली बच्चों की राशि को उनकी माताओं के खाते में डालने की मांग की है। इससे आंगनबाड़ी केंद्र बंद हो जाएंगे।
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यूनियन का कहना है कि केंद्र सरकार ने देश के ग्यारह हजार आंगनबाड़ी केंद्र वेदांता कंपनी के हवाले करके निजीकरण व ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत कर दी है। मध्य प्रदेश व राजस्थान की भाजपा सरकारों ने लगभग सात हजार आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद कर दिया है। हिमाचल प्रदेश की विभिन्न सरकारों ने हमेशा ही आंगनबाड़ी कर्मियों से भेदभाव किया है। इसी कारण केरल, पुड्डुचेरी, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना व महाराष्ट्र आदि के मुकाबले हिमाचल में बहुत कम वेतन दिया जाता है। केरल में आंगनबाड़ी को साढ़े बारह हजार वेतन दिया जाता है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में वेतन साढ़े ग्यारह हजार है।
यूनियन का कहना है कि ज्यादातर राज्यों में आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स को पेंशन दी जाती है। सभी कर्मचारियों के वेतन के लिए पंजाब पैटर्न को आधार बनाया जाता है, परंतु आंगनबाड़ी के वेतन के लिए इसे पैमाना नहीं बनाया जाता है। पूरे देश में सबसे कम वेतन हिमाचल में दिया जाता है। उन्हें ग्रेज्युटी व पेंशन नहीं दी जाती। उन्हें वर्षों तक नेशनल रूरल हेल्थ मिशन का पैसा नहीं दिया जाता है। इस तरह से आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स भारी शोषण की शिकार हैं। यूनियन ने मांग उठाई है कि हिमाचल में हरियाणा की तर्ज पर वेतन व सुविधाएं दी जाएं।