अन्नकूट का त्योहार कुल्लू में धूमधाम के साथ मनाया गया। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने भगवान रघुनाथ के मंदिर पहुंच कर उनका आशीर्वाद लिया। अन्नकूट को गोवर्धन पूजा से भी जाना जाता है। कुल्लू में इस दिन भगवान रघुनाथ को नए अनाज का भोग लगाया जाता है। इस मौके पर भगवान रघुनाथ का श्रृंगार करके चावल का ढेर लगाकर उस पर उन्हें विराजमान करवाया जाता है।
माना जाता है कि जिस तरह से भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गौवंश व ग्वालों की रक्षा की थी उसी तरह कुल्लू में मनाए जाने वाले अन्नकूट त्योहार को भी गोवर्धन पूजा से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान रघुनाथ को नया अनाज चढ़ाए जाने से भगवान रघुनाथ फसलों की रक्षा करते हैं और अन्न की कमी न होने का आशीर्वाद देते हैं। अन्नकूट त्योहार हर वर्ष दिवाली के दूसरे या तीसरे दिन मनाया जाता है, जिसके लिए शास्त्र पद्वति के अनुसार दिन का चयन किया जाता है
भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि कुल्लू घाटी में अन्नकूट व गोर्वधन पूजा के नाम से जानी जाती है। इस मौसम में नए चावल को भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है। गोर्वधन पूजा द्वापर युग से लेकर चली आ रही है और जब से लेकर कुल्लू में रघुनाथ भगवान पदार्पण हुआ है तब से लेकर अन्नकूट का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है और इसे गोवर्धन पूजा कहा जाता है।
सुल्तानपुर में चावल के ढेर लगाया जाता है और उसके ऊपर भगवान रघुनाथ को विराजमान किया जाता है। सभी लोग भगवान रघुनाथ का प्रसाद ग्रहण करते है। एक तरफ भगवान को भोग लगाया जाता है और दूसरी तरफ गौमाता की पूजा अर्चना होती है और सभी नए अनाज का भोग गौ ग्रास के रूप में गौमाता को थाली में परोसा जाता है।