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घोषणा 2700 की मिल रहे 2 हजार, आशा वर्करों को सताने लगी अपने भविष्य की चिंता

मृत्युंजय पुरी |

कोरोना काल में घर घर सूचना पहुंचाने और दवाई पहुंचाने की चिंता जब सरकार को सताने लगी तो उस समय सरकार को आशा वर्करों की याद आई। लेकिन जैसे ही कोरोना के केस कम हुए सरकार फिर इन्हें भूल गई। प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा की अगर बात की जाए तो यहां 1800 के करीब आशा वर्कर हैं जिन्होंने घ-घर जाकर कोरोना की लड़ाई को जीतने और कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन घर घर तक पहुंचाने में सरकार की मदद की। लेकिन सरकार ने इन्हें नियमित करने या कॉन्ट्रेक्ट में लाने के लिए न तो कोई विचार किया न ही ऐसी कोई बात कही है। जिससे आशा वर्करों का मनोबल गिर गया है। क्योंकि कोरोना में सबसे बड़ा योगदान इन आशा वर्करों का ही रहा है। 

बता दें कि कोरोना काल एक ऐसा समय था जब अपने ही अपनों की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे थे। ऐसे में इन्हीं आशा वर्करों ने कोरोना पॉजिटिव मरीजों के घर घर जाकर उन्हें दवाइयों से लेकर सभी जरूरी चीजें मुहैया करवाई। बात सिर्फ कोरोना जंग तक सिमित नहीं रही। जब वैक्सीनेशन लगवाने की बारी आई तो सरकार ने इसको लेकर जानकारी देने का जिम्मा भी इन्हीं आशा वर्करों को सौंपा गया। 

हालांकि सरकार ने आशा वर्करों के काम से खुश होकर करोना काल में इन्हें 2 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशी देने की घोषणा की जिसे बाद में बढ़ाकर 2700 रुपये कर दिया। लेकिन सरकार की घोषणा के बाद भी इन्हें सिर्फ 2 हजार रुपये ही दिए जा रहे हैं जिससे आशा वर्करों में सरकार के प्रति काफी रोष है। ऐसे में इन आशा वर्करों को अपना भविष्य अधंकार में जाता दिख रहा है। आशा वर्करों ने सरकार से मांग की है कि सरकार जल्द उनके बारे में विचार करे और उन्हें नियमित किया जाए।