हमीरपुर जिला के युवा समाजसेवी शांतनु कुमार लगभग 20 सालों से समाज सेवा के अलावा प्रदेश के 12 जिला से लावारिस पाए जाने वाला शब्द की अस्थियां इकट्ठा करके हरिद्वार ब्रह्मकुंड हर की पौड़ी में हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार पिंड दान के साथ विसर्जन करते हैं आज दो शवों की अस्थियां गंगा में विसर्जित करने के लिए हरिद्वार गए।
शांतनु अब तक 511 शवों की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जन कर चुके हैं शांतनु सुबह उठकर अखबार में जैसे ही लावारिस शवों की मिलने की खबर पढ़ते हैं तुरंत वहां की प्रशासन और उनके साथ जुड़े लोगों से फोन पर संपर्क करके अस्थियां पार्सल जैसे पैकिंग करके बसों द्वारा मंगवाते हैं और तो और बस वाले को भी पता नहीं होता कि उस पार्सल में अस्थियां है।
यह काम बहुत ही कठिन एवं चुनौतीपूर्ण कार्य है शांतनु नदवान ज्वालाजी सुजानपुर हमीरपुर श्मशान घाट में खुद जाकर अस्थियां इकट्ठा करके लाते हैं। एक जहां दिन में भी लोग श्मशान घाट जाने से या वहां से जाने से कतराते हैं। वही, शांतनु दिन हो या रात बिना डर के अस्थियां चुन कर लाते हैं।
शांतनु को जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार एवं इंटरनेशनल अवार्ड कुल मिलाकर 19 अवार्ड मिल चुके हैं और इसमें मिली राशि को भी शांतनु ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में बांट दिया।
समाजसेवा के लिए नहीं की शादी
शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया। जब भी उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं। समाज सेवा में लीन शांतनु स्वामी विवेकानंद और मदर टेरेसा को अपना आदर्श मानते हैं।