मंडी: पहाड़ों में सर्द ऋतु के जाते ही खिलने वाले लाल सुर्ख बुरांश जिसका इस्तेमाल अभी तक चटनी, स्कैवश या दिमाग को ठंडा रखने के लिए पेय तैयार करने के लिए ही लोग पारंपरिक तौर पर करते आए हैं। अब इससे कोरोना का वायरस खत्म होगा। यह बेहद उपयोगी और चमत्कारिक खोज आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने की है।
शोध टीम के निष्कर्ष ‘बायोमोलेक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स’ नामक जर्नल में हाल में प्रकाशित किए गए हैं। शोध टीम का नेतृत्व डॉ श्याम कुमार मसकपल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस, आईआईटी मंडी और डॉ. रंजन नंदा, ट्रांसलेशनल हेल्थ ग्रुप और डॉ सुजाता सुनील, वेक्टर बोर्न डिजीज ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने किया है। शोध-पत्र के सह-लेखक डॉ. मनीष लिंगवान, सुश्री शगुन शगुन, सुश्री फलक पहवा, श्री अंकित कुमार, श्री दिलीप कुमार वर्मा, श्री योगेश पंत, श्री लिंगराव वी.के. कामतम और सुश्री बंदना कुमारी हैं।
कोविड-19 महामारी के दूसरे साल भी शोधकर्ता इस वायरस की प्रकृति समझने और संक्रमण रोकने के नए-नए तरीकों की खोज करने में जुटे हैं। ऐसे में टीकाकरण शरीर को वायरस से लड़ने की शक्ति देने का एक रास्ता है जबकि पूरी दुनिया वैक्सीन के अतिरिक्त दवाओं की खोज में है जो मनुष्य के शरीर को वायरस के आक्रमण से बचा ले। ये दवाएं रसायनों का उपयोग कर शरीर की कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर्स से जुड़ती हैं और वायरस को अंदर प्रवेश करने से रोकती हैं या फिर सीधे वायरस पर असर करती हैं और शरीर के अंदर वायरस बनने से रोकती हैं।
डॉ. श्याम कुमार मसकपल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस, आईआईटी मंडी ने बताया, “उपचार के विभिन्न एजेंटों का अध्ययन किया जा रहा है। उनमें पौधों से प्राप्त रसायन – फाइटोकैमिकल्स से विशेष उम्मीद है क्योंकि उनके बीच गतिविधि में सिनर्जी है और प्राकृतिक होने के चलते विषाक्त करने की कम समस्याएं पैदा होती है। हम बहु-विषयी दृष्टिकोण से हिमालयी वनस्पतियों से संभावित अणुओं की तलाश कर रहे हैं।’’
हिमालयी बुरांश जिसका वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रोन अर्बारियम है उसकी पंखुड़ियां का सेवन स्थानीय आबादी स्वास्थ्य संबंधी कई लाभों के लिए विभिन्न रूपों में करती है। आईआईटी मंडी और आईसीजीईबी के वैज्ञानिकों ने वायरस रोकने के मद्देनजर शोध में विभिन्न फाइटोकैमिकल्स युक्त अर्क का वैज्ञानिक परीक्षण शुरू किया। उन्होंने बुरांश की पंखुड़ियों से फाइटोकैमिकल्स निकाले और इसके वायरस रोधी गुणों को समझने के लिए जैव रासायनिक परीक्षण और कम्प्युटेशनल सिमुलेशन का अध्ययन किया।
डॉ. रंजन नंदा, ट्रांसलेशनल हेल्थ ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने बताया, “हम ने हिमालयी वनस्पतियों से प्राप्त रोडोडेंड्रोन अर्बाेरियम पंखुड़ियों के फाइटोकैमिकल्स का प्रोफाइल तैयार और परीक्षण किया और इसमें कोविड वायरस से लड़ने की उम्मीद दिखी है।’’
शोधकर्ताओं ने प्रायोगिक परीक्षण कर यह भी दिखाया कि पंखुड़ियों के अर्क की गैर-विषाक्त खुराक से वेरो ई 6 कोशिकाओं में कोविड का संक्रमण रुकता है (ये कोशिकाएं आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया संक्रमण के अध्ययन के लिए अफ्रीकी हरे बंदर के गुर्दे से प्राप्त होती हैं) जबकि खुद कोशिकाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
डॉ. सुजाता सुनील, वेक्टर बोर्न डिजीज ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने बताया, “फाइटोकैमिकल प्रोफाइलिंग, कंप्युटर सिमुलेशन और इन विट्रो एंटी-वायरल एसेज़ के मेल से यह सामने आया है कि खुराक के अनुसार बुरांश की पंखुड़ियों के अर्क ने कोविड-19 वायरस को बनने से रोका है।’’