हिमाचल प्रदेश की बसों में सफर करना अब महंगा हो गया है। हिमाचल प्रदेश की जयराम सरकार ने किराया में 25 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। कुछ वक़्त में इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी और लोगों को मजबूरन सफ़र करना पड़ेगा। इसी बीच अभी से प्रदेश में सरकार के इस फैसले का विरोध होने लगा है। लेकिन निजी बस ऑपरेटरों की मांगों पर सरकार को आख़िरकार झुकना ही पड़ा।
प्रदेश में जब से बीजेपी की जयराम सरकार सत्ता में है तब से अब तक 2 बार किराये में बढ़ोतरी की जा चुकी है। 2018 में भी सरकार ने प्रदेश में बस किराया 20 से 24 फीसदी तक बढ़ाने का निर्णय लिया था औऱ न्यूनतम किराया 3 से 6 रुपये किया। उस समय में भी खूब विरोध हुआ, विपक्ष ने भी सरकार पर हल्ला बोल कार्यक्रम चलाया… लेकिन आखिर में न्यूनतम किराया 6 की जगह 5 रुपये करके मामला शांत हो गया। कुछ दिन जनता ने खूब हल्ला किया… लेकिन आख़िर में वही जनता सफ़र करने को मजबूर भी है।
इससे पहले की बात करें तो 2013 में वीरभद्र सरकार ने न्यूनतम किराया 3 रुपये तय किया था। लेकिन 2017 के चुनाव में सरकार बदलने के बाद जयराम सरकार ने आते ही 2018 में प्रदेश में बस किराया बढ़ाया। यानी जयराम राज में 2018 से 2020 तक 2 से 3 साल के कार्यकाल में किराया लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। 2018 में भी पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़े थे और सरकार ने निजी ऑपरेटरों की मांग पर किराया बढ़ाया था। अब फ़िर पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़े तो जयराम सरकार ने निजी ऑपरेटरों की मांग मानी।
सरकार को क्या फ़ायदा…??
किराया बढ़ोतरी पर हालांकि सरकार को फायदा भी होता है लेकिन उतना नहीं… जितना प्राइवेट ऑपरेटर कमाते हैं। किसी जगह तक जाने का किराया अगर 28 रुपये है तो निजी ऑपरेटर 25 रुपये में सवारियां ढोते हैं। ऐसे में उन्हें फायदा भी रहता है औऱ सवारियां भी ज्यादा अट्रैक्ट होती हैं। आम तौर पर सरकार लंबे बस रूट्स पर पैसा ज्यादा कमाती है लेकिन अब जब बाहरी राज्यों में आन जान बंद है और लंबे रूट्स कम चल रहे हैं तो सरकार अपनी ज्यादा कमाई का भी हवाला नहीं दे सकती। ऐसे में ये साफ कहा जा सकता है कि सरकार ने निजी बस ऑपरेटर की पूरी तरह बात मानी है।
लिहाज़ा, विभाग के ज्ञानियों की माने तो सरकार के पास निजी ऑपरेटरों को राहत देने के लिए कई तरह के ऑप्शन भी थे। लेकिन सरकार ने उन ऑप्शन को पूरी तरह दरकिनार किया और महामारी के वक़्त आसान रास्ता चुनते हुए किराया बढ़ा दिया। यहां भी ये कहा जा सकता है कि मांगों पर सरकार का ये फैसला एक तरह से निजी ऑपरेटरों के आगे झुकने जैसा ही है। यही नहीं, जयराम राज में पहले भी प्राइवेट ऑपरेटर कई तरह की मनमानियां कर चुके हैं। कांगड़ा जिला में भी कई निजी ऑपरेटर अवैध रूट पर चलते रहे हैं। कई जगहों पर सरकारी बस रूट के साथ-साथ ही निजी बसों को लगाने की ख़बरे भी सामने आती रही हैं।
क्या दिन आ गए…!!!
मौजूदा वक़्त में प्रदेश में सरकार के मंत्री यही हवाला देते हैं कि बाकी राज्यों से किराया अभी भी कम ही है। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब सरकारें महंगाई और ठेस पहुंचाने वाली चीज़ों पर बाकी राज्यों से कम्पेरिजन कर रही हो। प्रदेश बीजेपी औऱ कांग्रेस की पहले की सरकारें ऐसी हुआ करती थी जो किसी बेस्ट राज्य और उसके कामकाज को फॉलो किया करती थी। लेकिन अब ये वक़्त आ गया है कि किराया बढ़ाना या किसी जन विरोधी फैसले को लागू करने पर दूसरे राज्य का हवाला दे दिया जाता है। जनहितेशी कामों पर किसी का हवाला नहीं मिलता और जनविरोधी कामों पर हवाला दे दिया जाता है।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महामारी के वक़्त देश की आर्थिक स्थिति को भारी नुकसान पहुंचा है। इस नुकसान का अच्छा ख़ासा असर हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिला। एक तरह लॉकडाउन ने लोगों के रहने-जीने की रोटिन ही बदल दी। इसी बीच कई लोग बेरोजगार हुए और कई लोगों ने अपने घर बार खोए। लेकिन अब जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई है तो महंगाई की मार ने लोगों को जीना मुश्किल कर दिया है।
देश-प्रदेश की सरकारें आर्थिक स्थिती को सुधारने के लिए बेधड़क टैक्स और ऐसे फैसले ले रही है जिसका सीधा असर जनता पर पड़ रहा है। देश-प्रदेश की आर्थिक स्थिति की जिम्मा वैसे तो हर नागरिक का होना चाहिए… लेकिन ये भी जरूर होना चाहिए की हर नागरिक एक सम्मान हो और बराबरी से टैक्स वगैराह अदा करे। मौजूदा में हिमाचल के साथ कई राज्यों की सरकारें ऑनलाइन संवाद, यज्ञ, पूजन आदि करवाकर पैसा बर्बाद कर रही हैं। लेकिन उनके लिए आर्थिक स्थिति को सुधारना केवल भाषणों तक की सीमित हैं।