प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अप्रैल 2016 को देश के किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए -NAM ( इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एडवरटाइजिंग मार्किट) योजना का शुभारंभ किया था। जिसके तहत भारत की 585 विपणन मंडियां चयनित की गई थी। इस योजना में हिमाचल की 19 मंडियां को भी शामिल किया गया है। इस योजना में हिमाचल को भी साढ़े पांच करोड़ की राशि मिली है।
इस के तहत हर मंडी के लिए 30-30 लाख का आईटी सामान दिया गया है। जिसमें 6-6 कंप्यूटर सिस्टम प्रोजेक्टर लैब सहित ऑनलाइन का आईटी से जोड़ने के लिए जरूरी सामान मुहैया करवाया गया है। यहां तक कि इंटरनेट लीज लाइन भी सभी मंडियों को दे दी है।
लेकिन, सरकार और अफसरों के ढुलमुल रवैये से ये प्रोजेक्ट गति नहीं पकड़ पा रहा है और किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस योजना में मंडियों को व्रेबीज प्रणाली से भी जोड़ना है। जिससे मंडियों में आने वाली सभी गाड़ियों के ऊपर चेक रखा जा सकेगा।
लेकिन, हिमाचल में इस योजना को कुछ आढ़ती और बिचौलियों सफल नहीं होने दे रहे हैं। ट्रेड्स ऑनलाइन आना नहीं चाहता है। ऊपर से सरकार भी इसको लेकर सीरियस नहीं है। ऑनलाइन से किसानों बागवानों को फायदा होना है क्योंकि वह सीधा अपना माल बेच सकेगा। काम धीमी गति से चल रहा है। ई नाम की कछुआ चाल पर केन्द्र ने हिमाचल सरकार से जबाब तलब किया है।
ये योजना ऐसी है कि जिस योजना से किसान का तो भरपूर फायदा है लेकिन ये ऐसी योजना नहीं है जो सिर्फ किसान का फायदा करती है। ऐसी व्यवस्था है, जिस व्यवस्था की तरफ जो थोक व्यापारी है, उनकी भी सुविधा बढ़ने वाली है। इतना ही नहीं ये ऐसी योजना है, जिससे उपभोक्ता को भी उतना ही फायदा होने वाला है। उपभोक्ता को भी फायदा होगा।
बिचौलिए जो बाजार व्यापार लेकर के बैठे हैं, माल लेते हैं और बेचते हैं, उनको भी फायदा हो और किसान को भी फायदा हो। लेकिन व्यव्यस्था की ढिलाई वजह से ई नाम योजना हिमाचल में सही ढंग से लागू नही हुई है। सेब सीजन सिर पर है ऐसे में इस योजना से बागवानों को लाभ मिल सकता है लेकिन इसको करने की इच्छा शक्ति सरकार एवम पहरेदारों में नहीं दिख रही है।