श्रम कानूनों में किये गए बदलाव और प्रदेश सरकार द्वारा मजदूरों के लिए लाए गए पांच अध्यादेश के खिलाफ सीटू ने हिमाचल विधानसभा का घेराव किया। सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर उसने इन अध्यादेशों को वापस न लिया तो मजदूर सड़कों पर उतरेंगे और 23 सितंबर को एक बार फिर से देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। कोरोना काल में करोड़ो लोगों का रोजगार छीन गया है और सरकार मजदूरों को राहत देने के बजाय बोझ डालने के काम कर रही है।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने केंद्र और प्रदेश सरकार को चेताया है कि वे मजदूर विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचे अन्यथा मजदूर आंदोलन तेज होगा। हिमाचल प्रदेश सरकार ने कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। इस से एक तरफ एक-तिहाई मजदूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। उद्योगपतियों द्वारा कानूनों की अवहेलना करने पर उसका चालान नहीं होगा और उन्हें खुली छूट दी जाएगी। मजदूरों को ओवरटाइम काम करने के लिए बाध्य करने से बंधुआ मजदूरी की स्थिति पैदा होगी।
विजेंदर मेहरा ने मजदूर विरोधी कदमों और श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलावों पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि अगर पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाकर मजदूरों के शोषण के कदमों को रोका न गया तो मजदूर सड़कों पर उतरकर सरकार का प्रतिरोध करेंगे।