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सीएम सुक्खू पहुंचे शिपकी-ला, ‘सरहद वन उद्यान’ की रखी नींव

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  • मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू पहुंचे चीन सीमा शिपकी-ला
  • ‘सरहद वन उद्यान’ की रखी आधारशिला, सेना और ITBP जवानों में भरा जोश
  • सुक्खू बने यहां पहुंचने वाले दूसरे मुख्यमंत्री, इंदिरा गांधी और परमार आए थे 1968 में

Shipki-La Border: हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने किन्नौर जिले की चीन सीमा पर स्थित ऐतिहासिक और सामरिक महत्व के क्षेत्र शिपकी-ला का दौरा किया। इस दौरे के दौरान उन्होंने ‘सरहद वन उद्यान’ की आधारशिला रखी, जो न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से अहम है, बल्कि सीमांत क्षेत्रों में हरियाली और सुरक्षा की सांकेतिक एकजुटता को भी दर्शाता है।

मुख्यमंत्री ने स्थानीय लोगों, भारतीय सेना और आईटीबीपी के अधिकारियों व जवानों को संबोधित किया, और भारत माता की जय के नारों के साथ देशभक्ति और उत्साह का माहौल तैयार किया। उन्होंने शिपकी-ला की रणनीतिक महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यह इलाका न केवल सीमावर्ती सुरक्षा के लिहाज़ से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रदेश की पहचान और गौरव से भी जुड़ा है।

सुखविंद्र सिंह सुक्खू ‘इंदिरा पॉइंट’ तक भी पहुंचे, जहां से उन्होंने सीमा क्षेत्र का भौगोलिक और सामरिक निरीक्षण किया। यह दौरा ऐतिहासिक इसलिए भी है क्योंकि वे हिमाचल प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो शिपकी-ला तक पहुंचे। इससे पहले 1968 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां आई थीं, उनके साथ हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार भी थे। उस दौर में यह क्षेत्र सड़क से जुड़ा नहीं था और दुर्गम रास्तों से ही यहां पहुंचना संभव था।

मुख्यमंत्री सुक्खू के इस दौरे को राज्य सरकार की सीमांत क्षेत्रों के विकास, सुरक्षा और संपर्क बढ़ाने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। सरकार अब सीमावर्ती इलाकों में पर्यटन, बुनियादी ढांचे और हरित परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रही है।

हिमाचल का शिपकिला पास आज से पर्यटकों के लिए ओपन हो जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार से परमिशन मिल गई है। CM सुखविंदर सुक्खू  पर्यटकों का स्वागत कर देश को नया टूरिस्ट डेस्टिनेशन सौंपेंगे।

देश की आजादी के बाद पहली बार खुल रहे शिपकिला पास तक जाने के लिए आधार कार्ड जरूरी होगा। किन्नौर के खाब में ITBP की चेक पोस्ट पर पहचान पत्र दिखाने के बाद ही आगे जाने की परमिशन मिलेगी। अभी किन्नौर तक ही पर्यटक आ पाते थे, लेकिन खाब से आगे जाने की परमिशन किसी को नहीं थी।