➤ गोविंदन रंगनाथन को चेन्नई से मध्य प्रदेश SIT ने गिरफ्तार किया
➤ जांच में कोल्ड्रिफ सिरप में DEG/EG की मात्रा मानक से 486 गुना अधिक पाई गयी
➤ कंपनी के दस्तावेज़ और बिल गायब, प्रोपलीन ग्लाइकोल की खरीद-बिक्री का रिकॉर्ड नहीं मिला
मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत का कारण बनी कोल्ड्रिफ कफ सिरप से जुड़े ताजा खुलासे और गिरफ्तारियों की श्रृंखला लगातार आग बढ़ा रही है। मामले की SIT टीम ने बुधवार-गुरुवार की दरमियानी रात तमिलनाडु के चेन्नई में छापे में इस सिरप बनाने वाली कंपनी के निदेशक गोविंदन रंगनाथन को दबोच लिया। गिरफ्तारी के समय रंगनाथन अपनी पत्नी के साथ फरार चल रहा था और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी लगाया गया था। चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग पर रंगनाथन का अपार्टमेंट सील कर दिया गया जबकि उनके रजिस्टर्ड ऑफिस का दरवाज़ा बंद मिला।
जांच दल ने जैसे-जैसे पर्दा उठाया, स्थितियाँ और भयावह दिखीं। तमिलनाडु के ड्रग कंट्रोल निदेशालय की शुरुआती रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जिस कच्चे माल से सिरप बनाया गया, वह नॉन-फार्मास्यूटिकल ग्रेड का था — यानी दवा निर्माण के मानकों के काबिल ही नहीं। कंपनी ने प्रोपलीन ग्लाइकोल के दो बैग (प्रत्येक 50 किलो, कुल 100 किलो) मार्च में खरीदे — पर न तो किसी बिल का ठोस सबूत मिला और न ही स्टॉक-एंट्री का कोई रिकॉर्ड। जांच में यह भी पता चला कि भुगतान कभी नकद और कभी G-Pay से किया गया, जो दस्तावेज़ छुपाने की कोशिश का संकेत देता है।
मन खाने वाली बात लैब रिपोर्ट्स में आई जब अनुसंधान प्रयोगशाला ने डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) जैसे जहरीले रसायनों की उपस्थिति का पता लगाया — और उनकी मात्रा तय सीमा से 486 गुना अधिक निकली। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी अधिक मात्रा सीधे किडनी और मस्तिष्क को नष्ट करने वाली होती है और बच्चों के लिए यह तुरंत घातक थी। एक अनाम एक्सपर्ट ने कहा कि यह मात्रा किसी बड़े जानवर के लिए भी जानलेवा है — मानव विशेषकर बच्चों के लिए तो और भी अधिक विषैला।
जांच टीम को यह भी संकेत मिला कि कंपनी ने निरीक्षण के दौरान अपने कुछ रिकॉर्ड तेज़ी से ख़त्म कर दिये — यानी दस्तावेज़ों को नष्ट करने का भी प्रयास हुआ। तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल अथॉरिटी ने साफ कहा है कि नॉन-फार्मास्यूटिकल ग्रेड केमिकल का उपयोग दवा निर्माण में सार्वजनिक सुरक्षा के लिए अत्यंत खतरनाक है और ऐसे उत्पादों के वितरण पर तत्काल रोक तथा दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई आवश्यक है।
मध्य प्रदेश में 23 बच्चों की मौत की घटना के बाद शुरू हुई जांच अब तमिलनाडु और अन्य जगहों तक फैल चुकी है। रंगनाथन की गिरफ्तारी के साथ-साथ यह मामला फार्मा-रेगुलेशन, आपूर्ति-श्रृंखला पारदर्शिता और दवा विनियमन की कसौटियों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। जांच अगली कड़ी में यह स्पष्ट करेगी कि यह त्रासदी लापरवाही का नतीजा थी या जानबूझकर कम मानक का कच्चा माल इस्तेमाल कर जोखिम उठाया गया — पर फिलहाल सबूत यह इंगित करते हैं कि कंपनी स्तर पर मूल रिकॉर्ड और बिल छिपाने की कोशिश की गई।
रिसर्चर और निगरानी एजेंसियाँ अब पूरे उत्पादन-चक्र, सप्लायर्स और वितरण चैनल की जांच कर रही हैं ताकि दोषियों को शीघ्र न्याय के कटघरे में लाया जा सके और बाजार से संदिग्ध बैच तत्काल वापस लिये जा सकें। बच्चों के परिवारों की हालत भावुक करने वाली बनी हुई है — प्रश्न ये है कि हज़ारों-लाखों रुपए के कारोबार के बीच जब सुरक्षा मानकों को ताक पर रखा जाता है तो जिम्मेदारों को कितनी सज़ा मिलनी चाहिए।



