<p>सीटू राज्य कमेटी की शिमला विधानसभा पर 17 मार्च को हज़ारों मजदूरों की प्रस्तावित रैली की तैयारियों के सिलसिले में शिमला, कुल्लू और हमीरपुर से प्रदेशभर के लिए चले तीन जत्थों का समापन हुआ। अंतिम दिन जत्थे बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, मंडी, धर्मपुर, सरकाघाट, बैजनाथ, टाण्डा, धर्मशाला पहुंचे। इस दौरान प्रदेशभर में दर्जनों जनसभाएं की गईं। इन जनसभाओं में हज़ारों लोग शामिल हुए। इन जनसभाओं को सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा सहित आदि ने सम्बोधित किया। उन्होंने केंद्र और प्रदेश सरकार की नीतियों पर जमकर हमला बोला और चेताया कि अगर मजदूर व किसान विरोधी कानून वापिस न लिए तो आंदोलन तेज होगा।</p>
<p>सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और महासचिव प्रेम गौतम ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों को खत्म कर बनाई गईं मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के खिलाफ,न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने,वेतन को उपभोक्ता मूल्य अथवा महंगाई सूचकांक के साथ जोड़ने,आंगनबाड़ी,मिड डे मील और आशा वर्करज़ को सरकारी कर्मचारी घोषित करने व हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन देने,प्री प्राइमरी में आंगनबाड़ी कर्मियों की नियुक्ति करने,फिक्स टर्म,ठेका,पार्ट टाइम,टेम्परेरी व कॉन्ट्रैक्ट रोज़गार पर अंकुश लगाने,आठ के बजाए बारह घण्टे डयूटी करने के खिलाफ,कोरोना काल में हुई करोड़ों मजदूरों की छंटनी,कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली, भारी बेरोजगारी, हर आयकर मुक्त परिवार को 7500 रुपये की आर्थिक मदद,हर व्यक्ति को दस किलो राशन की सुविधा,मजदूरों के वेतन में कटौती, ईपीएफ और ईएसआई की राशि में कटौती, किसान विरोधी तीन कानूनों और बिजली विधेयक 2020 के मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश के हज़ारों मजदूर सड़कों पर उतरेंगे व 17 मार्च को शिमला विधानसभा पर एकत्रित होकर सरकार पर हल्ला बोलेंगे।</p>
<p>उन्होंने प्रदेश सरकार पर भी मजदूर विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने प्रदेश सरकार के हालिया बजट को मजदूर,कर्मचारी व मध्यम वर्ग विरोधी बजट करार दिया है। उन्होंने कहा है कि मजदूरों के दैनिक वेतन में केवल पच्चीस रुपये,कोरोना योद्धा के रूप में कार्य कर चुकीं आंगनबाड़ी कर्मियों के वेतन में केवल 500 और 300 रुपये, आशा कर्मियों के वेतन में केवल साढ़े सात सौ रुपये, मिड डे मील कर्मियों के बजट में तीन सौ रुपये,चौकीदारों के वेतन में केवल तीन सौ रुपये,एसएमसी व आउटसोर्स आईटी शिक्षकों के वेतन में केवल पांच सौ रुपये,वाटर गार्ड के वेतन में केवल तीन सौ रुपये और सिलाई अध्यापिकाओं के वेतन में केवल पांच सौ रुपये की बढ़ोतरी मजदूरों व कर्मचारियों के साथ घोर मज़ाक है। इस बजट में एक बार पुनः एनपीएस कर्मियों को केवल सहानुभूति मिली है व एक रुपये की भी आर्थिक मदद नहीं मिली है। आउटसोर्स कर्मियों को भी बजट में निराशा ही हाथ लगी है। पर्यटन व ट्रांसपोर्ट सेक्टर की भी बजट में अनदेखी है। उन्होंने प्रदेश सरकार पर वर्ष 2003 के बाद नियुक्त कर्मियों और कॉन्ट्रेक्ट कर्मियों से धोखा करने का आरोप लगाया है।</p>
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