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सचिवालय में कानून ताक पर, क्या मुख्यमंत्री का सरकार पर नहीं नियंत्रण?

पी. चंद |

शिमला: हिमाचल में आए दिन नेताओं और अधिकारियों के कानून को ताक पर रख कर काम करने की खबरें आम हो गई हैं। पर इस बार तो सत्ताधारियों ने सारी हदे ही लांघ दी। बात है प्रदेश की सरकार और अफसरों के केंद्र राज्य सचिवालय की। यहां पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की नाक तले पर्यावरण को नुकसान पंहुचाया जा रहा है

आपको बता दें कि हैरिटेज की दृष्टि से महत्वपूर्ण सचिवालय में बदलाव कार्यों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ना मंजूर कर दिया था परंतु निर्माण कार्य आब भी चल रहे हैं। और तो और मंजूरी मिलने से पहले ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था। सरकार द्वारा दायर सभी आवेदनों को ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कानूनी तौर पर मेंटेनेबल न पते हुए निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी थी।

प्रश्न अब ये उठता है की बिना ग्रीन ट्रिब्यूनल की मंजूरी के कैसे करोड़ों के निर्माण कार्यों को सरकार ने मंजूरी दे दी? राज्य सरकार ने सचिवालय की छत को बदलने के साथ-साथ भवन की मौजूदा संरचना को बदलने के लिए अनुमति तो मांगी पर निर्माण कार्य शुरू होने के बाद।

इसके अलावा एक लिफ्ट को लगाने की भी अनुमति मांगी थी। इसके साथ एलर्सली मुख्य भवन में शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को लिफ्ट व रैंप, मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए आगंतुक प्रतीक्षालय, हिमाचल प्रदेश सचिवालय स्थित शिमला में आर्म्सडेल भवन में कार पार्किंग का विस्तार और बहुमंजिला पार्किंग और कार्यालय आवास, आर्म्सडेल चरण- निर्माण की अनुमति भी इसमें शामिल थी। सभी अनुमतियों को ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ना मंजूर कर दिया है

मुख्यमंत्री जयराम की प्रशासनिक क्षमता पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं। अब उनके अपने कार्यालय में पर्यावरण नियमों की अवहेलना उनका सरकार और अफसरसाही पर नियंत्रण साफ बताती है