भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM) ने सरकार और नगर निगम शिमला द्वारा शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण के लिए किए जा रहे कार्य का विरोध जताया है। माकपा नेता संजय चौहान ने कहा कि जिस प्रकार से सरकार व्यवस्थित तरीके से इसका निजीकरण कर रही है वे निंदनीय है। उन्होंने सरकार से मांग करत हुए कहा कि सरकार शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण के निर्णय को तुरन्त वापस ले और इसे पूर्व की भांति नगर निगम को सौंपा जाए। क्योंकि 74वें संविधान संशोधन के अनुरूप भी पेयजल की व्यवस्था करना नगर निगम का ही उत्तरदायित्व है।
उन्होंने कहा कि बीजेपी की नीतियां सदा ही मूलभूत सेवाओं जिनमे पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क आदि के निजीकरण की ही पक्षधर रही है। वर्ष 2012 में भी तत्कालीन बीजेपी की प्रदेश सरकार ने शिमला शहर के पेयजल की व्यवस्था निजी हाथों में देने के लिए टेंडर तक कर दिया था। जिसे पूर्व नगर निगम ने अगस्त, 2012 में सदन में प्रस्ताव लाकर निरस्त करवाया था और पेयजल की व्यवस्था नगर निगम शिमला के अधीन ही रखकर इसको सुदृढ़ करने का कार्य किया। परन्तु वर्ष 2017 में जबसे सरकार व नगर निगम में बीजेपी सत्तासीन हुई है तबसे ही सरकार ने पेयजल की व्यवस्था के निजीकरण के लिए कार्य किया है।
पूर्व नगर निगम ने वर्ष 2016 में सरकार से एक लंबे संघर्ष के पश्चात शिमला शहर की पेयजल योजनाओं को नगर निगम के अधीन लेकर इसके प्रबन्धन के लिए तत्कालीन सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग व शहरी विभाग को सम्मिलित कर एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ग्रेटर शिमला वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज सर्कल (GSWSSC) का गठन किया था और इसका प्रबन्धन नगर निगम शिमला के अधीन ही रखा गया था। इसे विश्व बैंक ने भी मान्य किया था और शहर की सभी पेयजल व सीवरेज परियोजनाएं जिसमें शिमला शहर के लिए पेयजल व्यवस्था के जीर्णोद्धार व सीवरेज व्यवस्था करने के लिए वर्ष 2016 में स्वीकृत विश्व बैंक पोषित 125 मिलियन डॉलर की परियोजनाओं को भी इसी के द्वारा लागू किया जाना था। परन्तु वर्ष 2018 में बीजेपी की नगर निगम ने सरकार के दबाव में आकर इस ग्रेटर शिमला वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज सर्कल को समाप्त कर एक कंपनी शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड(SJPNL) का गठन किया और पेयजल की व्यवस्था के निजीकरण की नींव रखी गई।
सरकार और नगर निगम का यह निर्णय असंवैधानिक तथा जन विरोधी है क्योंकि एक तो यह नगर निगम के संवैधानिक अधिकारों का हनन है दूसरा जबसे सरकार व नगर निगम ने शहर की पेयजल की व्यवस्था इस कंपनी को सौंपी है तबसे न तो पेयजल व्यवस्था सुचारू रूप से चलाई गई है और न ही समय पर पानी के बिल दिये जा रहे हैं। वर्ष 2018 के पेयजल संकट से शहर की बदनामी दुनिया में हुई और जो पानी के बिल कंपनी द्वारा दिये जा रहे हैं वह 8-9 महीनों के बिल हजारों व लाखों रुपए के दिये जा रहे हैं। जोकि बिल्कुल भी तर्कसंगत व न्यायउचित नहीं है और जनता इसका विरोध करती आ रही है।
वर्तमान में जिस प्रकार का घटनाक्रम SJPNL कंपनी में चलाया जा रहा है वह केवल शहरी विकास मंत्री व जल शक्ति विभाग के मंत्रियों के बीच झगड़े के कारण नहीं है जैसा कि दर्शाया जा रहा है बल्कि सरकार ने अब शिमला शहर के पेयजल व्यवस्था के निजीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है और सरकार इस कंपनी में जितने भी जल शक्ति विभाग व अन्य विभागों के कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें वापिस बुला कर सभी पेयजल योजनाओं को निजी हाथों में सौंपने के लिए तेजी से कार्य कर रही है। इस निजीकरण की प्रक्रिया से जहाँ निजी कंपनियां मुनाफा कमाएगी वहीं पेयजल की दरों में वृद्धि से आम जनता पर बोझ बढ़ेगा और पेयजल मूलभूत आवश्यकता न रह कर एक उपभोग की वस्तु रह जायेगी। आज तक दुनिया में सरकार द्वारा जहाँ भी पीने के पानी की व्यवस्था निजी कंपनी को दी गई है वह पूर्णतः विफल रही है और इससे जनता पर केवल आर्थिक बोझ ही डाला गया है।
सीपीएम सरकार की शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण की नीतियों के विरुद्ध जनता को लामबंद कर आंदोलन चलाएगी। यह आंदोलन तब तक चलाया जाएगा जब तक कि सरकार पेयजल व्यवस्था के इस निजीकरण के निर्णय को वापस नहीं लेती और इस कंपनी को निरस्त कर पेयजल की व्यवस्था संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नगर निगम शिमला के अधीन नहीं करती।