➤ भूवैज्ञानिकों ने चेताया- गीली मिट्टी और लचर ड्रेनेज सिस्टम से भू-स्खलन का खतरा
➤ PWD-IPH पर टली जिम्मेदारी, स्थायी समाधान के बजाय मानसून में ‘जगह-जगह पैबंद’
शिवांशु शुक्ला, धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल, आज एक विकराल समस्या से जूझ रहा है। धर्मशाला से मैक्लोडगंज के लिए खड़ा डंडा मार्ग, जो कि शॉर्टकट के रूप में पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, दरारों और गड्ढों से बदहाल हो चुका है। पहले 2 इंच की दरारें अब बढ़कर 4 से 6 इंच तक पहुंच गई हैं। गाड़ियों के स्किड होने, एक्सल टूटने और दुर्घटनाओं की घटनाएं अब आम हो गई हैं।
स्थानीय निवासी रशपाल का कहना है कि हर रोज दोपहिया और चारपहिया वाहन इस मार्ग पर दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। कई बार प्रशासन को अवगत करवाया गया, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। बारिश से पहले नालियों की सफाई और सड़क की मरम्मत की बात अब केवल कागजों में सिमट गई है।
होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन स्मार्ट सिटी धर्मशाला के अध्यक्ष राहुल धीमान और वरिष्ठ उपाध्यक्ष अशोक पठानिया ने चेताया है कि यदि बरसात से पहले सड़कें नहीं सुधारी गईं तो पर्यटन क्षेत्र जिला मुख्यालय से कट सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सड़कों की दुर्दशा और अव्यवस्थित पार्किंग मिलकर पर्यटन उद्योग को बर्बादी की कगार पर पहुंचा रही हैं।
वहीं, भूवैज्ञानिक और सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ प्रोफेसर अमरीश महाजन ने चेतावनी दी है कि धर्मशाला और मैक्लोडगंज की मिट्टी अब गीली हो चुकी है, जिसके पीछे सबसे बड़ी वजह है लचर ड्रेनेज सिस्टम। उन्होंने बताया कि 1998 में हुए एक शोध में 28 ऐसे स्थान चिन्हित किए गए थे जो भू-स्खलन की जद में हैं। उनका दावा है कि यदि साल 1905 जैसा कोई भूकंप फिर आया, तो धर्मशाला को भारी जानमाल का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस पर जब PWD के SDO डीएस ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कोतवाली बाजार से कर्मू मोड़ तक युद्ध स्तर पर कार्य हो रहा है और धंसे हुए खड्डों को भरने के निर्देश जारी किए गए हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने IPH विभाग को भी दोषी ठहराया और कहा कि कई बार सीवरेज कार्यों की अनदेखी के कारण सड़कें धंस रही हैं।
धर्मशाला, जो कि सिस्मिक ज़ोन 5 में आता है, वहां बेतरतीब शहरीकरण, कमजोर सीवरेज व्यवस्था, और प्रशासन की निष्क्रियता एक दिन बहुत बड़ी आपदा को जन्म दे सकती है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन और सरकार को केवल मानसून आने पर ही सतर्क होना चाहिए, या पूरे साल इस पर गंभीरता से काम कर भविष्य की तबाही को रोका जाना चाहिए?



