जिला ऊना में डीसी संदिप कुमार द्वारा तीन बच्चों को बाल-बालिका सुरक्षा योजना का लाभ दिलाया गया। मामला पेचीदा था, क्योंकि बच्चों के न तो जन्म प्रमाण पत्र थे और आधार कार्ड पर भी दो बच्चों के पिता का नाम छोटू राम दर्ज था। जबकि दो बच्चों के आधार पर कर्ण शर्मा नाम था। कागजात में त्रुटियां होने और औपचारिकताओं में फंसे होने के चलते तीन नाबालिग निराश्रित बच्चे सरकारी योजना के लाभ से वंचित थे।
वहीं, बच्चों के मामा विजय कुमार ने कहा कि उपायुक्त ऊना संदीप कुमार के प्रयासों के चलते अब योजना का लाभ मिलने की उम्मीद जगी है। डीसी ने सभी औपचारिकताएं पूरी करने में परिवार की भरपूर मदद की औऱ सभी विभागों को प्राथमिकता के आधार पर यह मामला निपटाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि 5 जनवरी 2020 को आर्थिक सहायता के लिए मामला जनमंच में भी उठाया था और अब बाल-बालिका सुरक्षा योजना का लाभ मिलने जा रहा है। इस सहायता के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया है।
बता दें कि यह मामला ग्राम पंचायत समूर कलां का है, जहां चार निराश्रित बच्चे अपने मामा-मामी के यहां रहते हैं। इनमें से तीन बच्चे नाबालिग हैं। जबकि एक लड़की की आयु 18 वर्ष है। बच्चों का घर बिलासपुर जिला के नैनादेवी विकास खंड में पड़ता है। लगभग तीन वर्ष पूर्व पिता का देहांत हो गया, जबकि मां वर्षों पहले बच्चों को छोड़कर जा चुकी है। पिता के देहांत के बाद ननिहाल में ही चारों बच्चों की परवरिश हो रही है।
उपायुक्त ऊना संदीप कुमार ने कहा कि आधार कार्ड पर पिता का नाम अलग-अलग था औऱ जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं थे। इसलिए सबसे पहले जन्म प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया आरंभ की गई। सीएमओ ऊना को जन्म प्रमाण पत्र बनाने के लिए आवेदन किया गया औऱ उचित कार्यवाई करने के बाद तहसीलदार ने आदेश पारित किए, जिसके बाद जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए। अब अगली प्रक्रिया आधार कार्ड में त्रुटि को दूर करने की थी। जन्म प्रमाण पत्र बनने के बाद आधार कार्ड में त्रुटि को दूर किया गया, ताकि योजना का लाभ प्रदान करने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी हो सकें। अब सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और महिला एवं बाल विकास विभाग ने केस बनाकर प्रदेश सरकार को भेज दिया है ताकि बजट का प्रावधान हो सके और बच्चों को उनका अधिकार मिल सके।
इस संबंध में जिला बाल संरक्षण अधिकारी ऊना शाम कुमार मल्होत्रा ने कहा कि बाल-बालिका सुरक्षा योजना के तहत सरकार निराश्रित बच्चों के अभिभावकों को 2300 रुपए प्रति माह प्रति बच्चा की आर्थिक सहायता देखभाल के लिए देती है। दो हजार रुपए अभिभावक के बैंक अकाउंट में जाते हैं, जबकि 300 रुपए की एफडी बच्चे के नाम पर बनाई जाती है। सरकार की यह सहायता 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक प्रदान की जाती है।