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प्रदेश में शुरू हुआ लोकतंत्र का महापर्व, कड़ाके की ठंड में एक महीने तक चलेगी सियासी गर्मी

बीरबल शर्मा |

प्रदेश में लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो गया हैं। इस समय पूरे प्रदेश में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है, कोहरे व धुंध का कहर बरप रहा है, शीत लहर ने आम जनजीवन को पूरी तरह से जाम जैसा कर दिया है। मगर इसी बीच जो सियासी गर्मी शुरू हुई है उसकी ब्यार आने वाले दिनों में प्रदेश के हर घर की चौखट तक महसूस की जाएगी। लोक सभा और विधानसभा चुनाव भले ही सत्ता के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते रहे हों। मगर देखा जाए तो उन चुनावों में उम्मीदवार एक सीमा तक होते हैं। मगर यहां पर तो यदि पूरे प्रदेश की बात की जाए तो लगभग 25 हजार प्रतिनिधियों को चुना जाएगा और इसके लिए लगभग 70 हजार तक उम्मीदवार इस ग्रामीण संसद कहे जाने वाले चुनाव में अपना भाग्य आजमाएंगे। 

अकेले मंडी जिला की ही बात करें तो अभी नई बनी मंडी नगर निगम के चुनावों का एलान नहीं हुआ है। मगर उसके अलहदा जो चुनाव आने वाले एक महीने में पूरे होने हैं उनमें ही जिले में 4724 प्रतिनिधि चुने जाएंगे। जिले में मंडी नगर निगम के अलावा चार नगर परिषदें सुंदरनगर, नेरचौक, जोगिंदरनगर व सरकाघाट हैं जबकि दो नगर पंचायतें करसोग व रिवालसर हैं। इनके लिए कुल 50 प्रतिनिधियों का चयन होगा। जाहिर है कि यदि एक सीट पर पांच उम्मीदवार भी औसतन मैदान में उतरें तो 250 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा सकते हैं।

इसके अलावा जिले में 36 जिला परिषद, 559 पंचायत प्रधान, 559 पंचायत उपप्रधान, 3271 वार्ड मैंबर व 249 बीडीसी सदस्य चुने जाने हैं। इन सब प्रतिनिधियों का चुनाव होना है जो 4724 बनते हैं। वार्ड मैंबर के लिए भले ही कम उम्मीदवार रहते हों  मगर सामान्य तौर पर दो तो औसतन माने ही जाते हैं जबकि अन्य पदों के लिए भी औसतन 5 उम्मीदवार मैदान उतरते हैं। ऐसे में लगभग 14 हजार के लगभग उम्मीदवार इन पदों के लिए मैदान में आ सकते हैं। ऐसे में यह चुनाव कोई छोटा चुनाव नहीं है। 

3271 मतदान केंद्र तो ग्रामीण संसद यानि पंचायती राज संस्थानों के चुनाव के लिए बनाए गए हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में भी कम से कम 50 मतदान केंद्र इसके लिए होंगे जहां पर चुनावी मशीनरी काम करेगी। हजारों कर्मचारी, अधिकारी, सुरक्षा कर्मी और अब कोरोना के चलते स्वास्थ्य कर्मी भी इसमें लगेंगे। कोरोना के चलते यह चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया हैं। एक महीने में इतनी बड़ी प्रक्रिया को पूरा करना अपने आप में एक चुनौती है। अब देखना यह होगा कि खून जमा देने वाली ठंड के बीच ग्रामीण संसद व स्थानीय निकाय के चुनावों का यह महापर्व कितनी व कैसी गर्मी लाता है और कोरोना से दो चार होते हुए सरकारी अमला इसे कितनी खूबसूरती के साथ अंजाम देता है।