कैंसर से पीड़त लोग ऐलोपैथी के साथ तिब्बती चिकित्सा पद्धति से अपना इलाज करा सकते हैं। हिमाचल के धर्मशाला में तिब्बती हरबल क्लीनिक से आपको दो माह की दवा 100 रुपए में मिल जाएगी। इस कैंसर ट्रीटमेंट सेंटर में सुबह पांच बजे ही टोकन लेने के लिए लंबी लाइनें लगने शुरू हो जाती है। भारत में तिब्बती चिकत्सा पद्धति की नींव रखने वाले भिक्षु डॉक्टर येशी धोंडेन धर्मशाला के मेक्लोडगंज में कैंसर ट्रीटमेंट सेंटर चला रहे हैं। कैंसर की एडवांस स्टेज पर जब मरीज थक हार जाता है, तो डॉ. येशी की शरण में आता है। डॉ. येशी कैंसर के कई मरीजों को ठीक भी कर चुके हैं। 94 वर्षीय डॉ. येशी धोंडेन वर्ष 1960 से लेकर 1980 तक दलाईलामा के निजी चिकित्सक रह चुके हैं।
डॉक्टर येशी से मिलने के लिए उनके कैंसर ट्रीटमेंट सेंटर पर सुबह पांच बजे ही मरीजों की लाइन लग जाती है। मरीजों को डॉ. से मिलने के लिए टोकन दिए जाते हैं, टोकन मिलने के तीन दिन बाद डॉक्टर येशी मरीज से मिलते हैं। डॉ. येशी एक दिन में केवल 45 मरीजों की ही जांच करते हैं। हाल ही में तिब्बती चिकित्सा पद्धति में बेहतरीन कार्य के बूते भारत सरकार की ओर से पद्मश्री अवार्ड मिलने के बाद धर्मगुरु दलाईलामा के निजी चिकित्सक रह चुके 94 वर्षीय बौद्ध भिक्षु डॉ. येशी धोंडेन ने केंद्र का धन्यवाद भी किया। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि यह अवार्ड कैसे मिला। शायद, हजारों मरीजों की दुआओं ने यह सम्मान दिलाया है। डॉ. येशी ने कहा कि अवार्ड मिलने से वह बेहद खुश हैं।
इसका श्रेय पिछले 50 वर्षों में मेरे इलाज से ठीक हुए हजारों मरीजों को जाता है। यह अच्छा है कि तिब्बतियन चिकित्सा पद्धति की वजह से हजारों मरीज ठीक हुए हैं। तिब्बतियन दवाइयां भारत में ही पैदा होती हैं। इसलिए यह भारतीय आयुर्वेदा से मिलती-जुलती हैं। तिब्बतियन दवाइयां 7वीं शताब्दी में तिब्बत में भारत से बुद्धिज्म से लाई गई थीं। भारत सरकार ने शुरू से ही तिब्बतियन दवाओं को विशेष पहचान दी है। उन्होंने कहा कि वह तिब्बतियन चिकित्सा संस्थान धर्मशाला के प्रमुख भी रहे हैं।