कैंसर जैसी घातक बीमारी को दूर करने वाले पद्मश्री डॉ.येशी डोडेन के पार्थिव शरीर का शुक्रवार अंतिम संस्कार किया गया। डॉ. येशी डोडेन का अंतिम संस्कार मैक्लोडगंज के पास कालापुल स्थित श्मशान घाट पर उनकी इच्छा अनुसार हिंदू परंपरा के अनुसार किया गया। डॉ. येशी डोडेन को अंतिम विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे और नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।
बता दें कि तिब्बती समुदाय में शव को जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया जाता है। लेकिन डॉ. यशी ने कहा था कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू परंपरा के अनुसार किया जाए। तिब्बती धर्म गुरू दलाईलामा ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि मैंने अपना सच्चा साथी खो दिया है। उनकी कमी हमेशा तिब्बती समाज को खलती रहेगी। जानकारी के लिए बता दें कि डॉ. यशी डोडेन दलाईलामा के चिकित्सक भी रह चुके हैं।
हज़ारों कैंसर मरीज़ों को एक नई ज़िंदगी देने वाले डॉक्टर येशी डोंडेन ने मंगलवार को मैक्लोडगंज स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली। डॉ यशी 93 साल के थे। इनकी मौत से लोगों को काफी अफसोस है। 15 मई 1927 को तिब्बत में इनका जन्म हुआ था। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के लिए डॉ येशी को 2018 में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इसके बाद इसी साल अप्रैल में इन्होंने रिटायरमेंट ले लिया। मेडिकल साइंस जहां फेल होती थी, वहां से डॉ येशी के इलाज से मरीजों को एक नई ज़िन्दगी मिल जाती थी। खासकर कैंसर जैसे असाध्य रोग के इलाज़ के लिए दूर-दूर से लोग इनके पास आते थे।
डॉ यशी से इलाज कराने के लिए देश से ही नहीं दुनिया भर से लोग इलाज कराने के लिए आते थे। डॉ यशी हर्बल दवाओं और तिब्बती पद्धति से कैंसर रोगियों का इलाज करते थे। डॉ येशी से इलाज के लोग दो-दो, तीन-तीन महीने पहले से ही अपाइंमेंट ले लिया करते थे। लोग इंतज़ार करते थे कि उनका नंबर कब आयेगा कि वो अपना इलाज कर सकें। डॉ येशी ने 20 साल की उम्र में ही डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर ली थी। 1960 में इन्होंने तिब्बती मेडिकल कॉलेज की स्थापना की थी। साथ ही साथ ये 1979 तक इसी कॉलेज में प्रिसिंपल और निदेशक भी रहे थे।
डॉ येशी सन् 1960 से 1980 तक ये तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के चिकित्सक रहे। हज़ारों मरीज़ इनके इलाज़ से कैंसर जैसी बीमारी को मात देने में कामयाब रहे। इनके निधन से कैंसर जैसी बीमारी से लड़ रहे लोगों को बड़ा झटका लगा है। उनके निधन की खबर सुनकर लोग उनके आत्मा की शांति की प्रार्थना कर रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित अस्पताल में अब भी कैंसर मरीज़ों का इलाज़ होता है।