आजादी के बाद अस्तित्व में आई धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र में भले ही अब तक भाजपा और कांग्रेस का वर्चस्व रहा हो और दोनों ही पार्टी के नेता धर्मशाला के समग्र विकास की बात करते हों। लेकिन, अंतर्रराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त धर्मशाला की जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। महज 15 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वार्ड नंबर दो की जनता आज भी मूलभूत सुविधाओं से इस कदर महरूम हैं कि उन्हें आज भी आदिवासियों सी जिंदगी गुजर-बसर करनी पड़ रही है। जहां एक तरफ धर्मशाला हर लिहाज़ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त कर रहा है वहीं सियासतदानों की कमजोर इच्छा शक्ति के कारण ये खूबसूरत शहर अंदर ही अंदर खोखला भी होता जा रहा है।
यही वजह है कि आज यहां के सैकड़ों ग्रामीणों ने उपचुनावों का बहिष्कार करने का फैसला कर लिया है। नगर निगम धर्मशाला के वार्ड नंबर दो में धर्मकोट का वो इलाका शामिल है जिसे मिनी इजराइल का भी तमगा हासिल है। भागसू जिसे पर्यटन क्षेत्र के मानचित्र में भागसू वाटरफॉल के लिए जाना जाता है, यहां हर साल लाखों लोग इस इलाके की खूबसूरती और शांत वादियों के दीदार के लिए पहुंचते हैं इसके ठीक विपरीत यहां के सियासतदान यहां महज वोट मांगने पहुंचते हैं उसके बाद यहां की चढ़ाई चढ़ने में उन्हें बेहद मुश्किल प्रतीत होती है।
शायद यहीं वजह है कि आज अप्पर भागसू, धर्मकोट, हैणी, रक्कड़, मटेड़, खताड़ी और धुपनाला गांव के सैकड़ों लोगों ने इन दिनों हो रहे उपचुनावों के बहिष्कार करने का मन बना लिया है। इतना ही इसके लिए बकायदा इनकी ओर से पदयात्रा कर रैली भी निकाली गई ताकि वो अपने मंसूबों से वोट मांगने आने वाले हर उम्मीदवारों और पार्टियों तक अपना मनसा पहुंचा सकें। इन ग्रामीणों की माने तो आजादी के बाद इन्होंने धर्मशाला की काया पल्ट होती देखी मगर धर्मशाला के महज़ 15 किलोमीटर के दायरे में अनदेखी के सिवाय और कुछ देखने को नहीं मिला। इनकी माने तो यहां न तो सड़क है न ही स्वस्थ्य का कोई साधन, शिक्षा और स्वरोजगार भी उनका उनके खुद के जुगाड़ से ही चल रही है।
काबिलेगौर है कि धर्मशाला प्रदेशभर का वो शहर है जहां सुविधाओं की लिहाज़ से हर आयाम हैं, यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल ट्रैक हैं क्रिकेट स्टेडियम है, यहां खुद बौद्ध धर्मगुरू दलाईलामा निवास करते हैं। यहां निर्वासित तिब्बत सरकार की संसद, आजादी के बाद बनने वाली सूबे की पहली नगर निगम का तमगा हासिल है, सूबे की दूसरी राजधानी है, स्मार्ट सिटी के दायरे में भी धर्मशाला का नाम है।
दुनिया के मानचित्र में इसे पर्यटन नगरी के नाम से भी ख्याती हासिल है। बावजूद इसके सरकारी स्तर पर यहां की आवाम की अंदरूनी हालत क्या है। अब ये भी जगजाहिर होने शूरू हो गई है। लोगों द्वारा पहली मर्तबा धर्मशाला से मतदान का बहिष्कार करने से सवाल अब ये खड़ा होने लगा है कि आखिर दुनियाभर में मशहूर शहर धर्मशाला की आंतरिक हकीकत इतनी कड़बी है तो प्रदेश के उन दुर्गम इलाकों में क्या होता होगा जहां सरकार तो क्या सूरज देवता भी चंद घंटे दर्शन देकर इधर से उधर हो जाते हैं।