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हिमाचल को फिर चाहिए डॉक्टर वाईएस परमार जैसा सीएम

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विवेक अविनाशी।। हिमाचल निर्माता के रूप में जब डॉ. यशवंत सिंह परमार का नाम लिया जाता है , प्रत्येक हिमाचलवासी प्रदेश के विकास के प्रति उनके योगदान को याद कर कृत- कृत हो उठता है। एक पिछड़े पहाड़ी राज्य में आर्थिक क्रांति लाने वाले और शासन-प्रशासन संबंधी कई युगांतरी कदम उठाने वाले वाईएस परमार का आज जन्मदिन है। ऐसे मौके पर अनायास ही हर हिमाचली के दिमाग यह बात कौंध जाती है कि क्या फिर कोई वाईएस परमार राज्य को नहीं मिल सकता?

तत्कालीन परिस्थितियों को समझते हुए जिस तरह से परमार ने हिमाचल का कार्यभार संभाला था वह काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने भविष्य की स्थितियों को समझते हुए नए हिमाचल के निर्माण के लिए कई कालजयी नीव रखीं। शिक्षा और वानिकी के क्षेत्र में योगदान आज भी दिखाई देता है।

वास्तव में डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल के वे महान सपूत थे जिन्होंने हिमाचल में जन्म ही नही लिया बल्कि हिमाचल की जनता के साथ आगे बढ़कर हिमाचल को विकास की नई बुलंदियां दी और देश में इस पहाड़ी प्रदेश को एक विशेष पहचान दिलाई।

हिमाचल की सिरमौर रियासत के पच्छाद क्षेत्र में ग्राम चन्हालग निवासी शिवानन्द सिंह परमार के घर में 4 अगस्त , 1906 जन्मे यशवंत सिंह परमार बचपन से ही अत्यंत मेधावी छात्र थे। स्नातक (आनर्स), फिर स्नातकोत्तर तथा विधि स्नातक जैसी उच्च शिक्षा उत्तीर्ण करने के अलावा लखनऊ विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र में 1944 ई. में पी.एचडी. की प्रतिष्ठित उपाधि ग्रहण की।

उन्होंने "हिमालयी बहुपति प्रथा की सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि" पर शोध कार्य कर यह उपाधि प्राप्त की थी। सिरमौर रियासत पंजाब की पहाड़ी रियासतों में मंडी के बाद दूसरी सम्पन्न रियासत थी। इसी सिरमौर रियासत में डॉ. परमार सब-जज और बाद में जिला एवं सत्र न्यायाधीश रहे। 1941 में रियासत के विरुद्ध ही एक क्रांतिकारी एवं निर्भीक निर्णय पारित करने के कारण उन्हें रियासत से सात वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया। निष्कासन समाप्त होने के बाद डॉ. परमार शिमला में वकालत करने लगे और रियासती शासन के विरुद्ध प्रजामण्डल आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करने लगे। इन्हें अपनी राजनैतिक सूझबूझ, वाक्पटुता, कर्मठता और दूरदृष्टि के कारण मार्च 1947 में ‘हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउन्सिल’ का प्रधान चुना गया।

डॉ. परमार जब हिमाचल के राजनैतिक क्षितिज पर उभरे, तब यहाँ के लोग 31 छोटी-छोटी रियासतों में बँटे हुए थे। तब इन सभी रियासतों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भौतिक विकास अत्यंत दयनीय दशा में था। डॉ. परमार ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर शिमला हिल स्टेट की 27 रियासतों और चंबा . मंडी, महासू, सिरमौर और सुकेत को मिला कर हिमाचल प्रदेश बना कर इसे भारतीय गणराज्य में मिला कर 'ग" दर्जे का राज्य बना दिया गया। बाद में हिमाचल को केंद्र प्रशासित राज्य का दर्जा दिया गया ।

डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल के पहले चुनावों से लेकर 1977 तक हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। हिमाचल के राजनैतिक इतिहास में डॉ. यशवंत सिंह परमार ही एक मात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने प्रदेश का नेतृत्व 6660 दिन किया। प्रदेश में सामाजिक वानिकी के विकास की अवधारणा का सूत्रपात डॉ. परमार ने ही किया था । वे मानते थे हिमाचल की तकदीर तभी संवर सकती है अगर यहाँ के लोगों का समग्र आर्थिक विकास हो। डॉ. परमार ने गाँव में रहने वाले लोगों की जरूरतों के हिसाब से चारा , लकड़ी सामजिक वानिकी के तहत लोगों तक पहुँचाने का कार्यक्रम प्रारम्भ किया। वे जमीनी हकीकत से सदैव वाकिफ रहे। उनकी राजनीति निहायत उच्च दर्जे की राजनीति थी। मई, 1981 में डॉ. परमार का स्वर्गवास हो गया।

हिमाचल प्रदेश में वैसे तो कई मुख्यमंत्री रहे जिनका प्रदेश के विकास में काफी योगदान रहा। लेकिन डॉ. परमार जैसी शख्सियत की एक बार फिर से हिमाचल को तलाश है।

(विवेक अविनाशी हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं और एक वरिष्ठ स्तंभकार हैं। देश के प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहे हैं। हिमाचल की राजनीति और सामाजिक जीवन पर इनकी कलम ख़ास तौर पर चलती रही है।)