हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सभी जानते हैं कि इन स्कूलों की हालत कैसी है। लेकिन, जहन में सवाल उठता है कि सरकारी स्कूलों में तो प्राइवेट के मुकाबले ज्यादा ट्रेंड अध्यापक होते हैं, बावजूद इसके इनमें छात्रों की संख्या क्यों कम हो रही है? क्यों कई स्कूल सिर्फ नाम मात्र के बचे हैं? पढ़ने वाले छात्रों की संख्या इक्का-दुक्का ही है। जबकि, सरकारी स्तर पर शिक्षा के नाम पर मोटी रकम खर्च की जाती है…।
उदाहरण के तौर पर शिमला के रोहड़ू स्थित छुहारा प्राथमिक शिक्षा खंड को ले लीजिए। यहां के अधिकांश स्कूलों में छात्रों की संख्या न के बराबर है। जो हैं भी वह ख़ासकर नेपाली समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। कई स्कूल ऐसे हैं जिनमें विद्यार्थियों की संख्या सिर्फ 5 से 8 के बीच है।
गौर करने वाली बात ये है कि यहां पर 4 प्राइमरी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या ज़ीरो है। हैरानी तो इस बात की है कि जिन स्कूलों में छात्र नहीं हैं, वहां भी दो-दो अध्यापकों की तैनाती है। इस शिक्षा खंड में 5 स्कूल ऐसे हैं जिसमें 5 ,3 और 2 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं जबकि, अध्यापकों की संख्या दो-दो है । वहीं, 12 स्कूल ऐसे हैं जिसमें केवल नेपाली मूल के विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।
इस शिक्षा खंड में कुल 85 प्राथमिक पाठशाला है। जिसमें विद्यार्थियों की संख्या 1856 है और इसमें से नेपाली मूल के विद्यार्थियों की संख्या 965 है ।
सरकारी स्कूलो में छात्रों की घटती संख्या चिंता का विषय है। क्योंकि, हमारे और आपके टैक्स से सरकारी स्कूलों का खर्चा चलता है। ऐसे में जब स्कूल में पढ़ने के लिए कोई राजी ही ना हो, फिर गड़बड़ी की आशंका तो जरूर है। क्या वजह है कि सरकारी स्कूलों से लोग मुंह मोड़कर अपने बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों में मोटी फीस जमा कर रहे हैं।