मंडी।। सिनेमा या छात्र जीवन में आपने कईयों को अध्यापकों के सामने चौड़ा होते देखा होगा… तू जानता नहीं मेरा बाप कौन है?? यह डायलॉग सिनाजोरी का मानक होता था। लेकिन, तब बपौती के इस आलीशान नशे को तत्कालीन टीचर अक्सर एक मिनट में चूर कर देते थे। हालांकि, शिक्षा का वह अलग दौर था…अब खुद छात्रों के पिता/गार्जियन स्कूल के सामने डंट जा रहे हैं और बोल दे रहे हैं—तू जानता नहीं मैं कौन हूं? मेरा रसूख क्या है? फिर टीचर अपनी ख़ैर मनाने लग रहे हैं…। हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िला में ऐसा ही एक वाकया देखने को मिल रहा है। यहां एक सरकारी स्कूल में राजनीतिक दखल से टीचरों का चैन गायब है और बच्चों के भविष्य का जो बंटाधार हो रहा है सो अलग..।
मंडी ज़िले के चौंतड़ा की राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला की स्कूल मैनेजमेंट कमेटी (एसएमसी) के प्रधान के रवैये से इलाके के लोग बेहद परेशान नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि एसएमसी प्रधान लगातार अध्यापकों और प्रधानचार्या को तबादला कराने की धमकी दे रहा है।
एमएमसी प्रधान के इस रवैये से अन्य छात्रों के अभिभावक भी परेशान हैं, क्योंकि एमएमसी के सदस्यों की सहमति के बिना ही वह रोज बयानबाजी कर रहा है और शिक्षा विभाग को पत्र लिख रहा है। जबकि इस तरह के पत्र एसएमसी की बैठक में प्रस्ताव लाए बिना नहीं भेजे जा सकते।
एसएमसी के सदस्य खुलकर भी इस मामले में कुछ नहीं बोल पा रहे हैं क्योंकि उक्त प्रधान को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बताया जा रहा है। बतौर दिहाड़ी मजदूर काम करने वाले एक शख्स, जो कि खुद एसएमसी के सदस्य हैं, उन्होंने बताया कि एसएमसी प्रधान का रवैया ऐसा है मानो वह खुद ही इलाके के विधायक हों और वह हाल ही में यहां से प्रधानाचार्य का तबादला करवाने का श्रेय भी ले चुके हैं।
क्या है मामला
बताया जा रहा है कि एमएमसी प्रधान का अध्यापकों और प्रधानाचार्य को धमकाना तब से शुरू किया है, जबसे उनकी पत्नी का पहले पति से हुआ बेटा जमा एक में फेल हुआ है (बेटा कानूनी रूप से गोद नहीं लिया गया है)। इसके बाद से एसएमसी ने ख़राब रिजल्ट के आधार पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। जानकारी ऐसी भी सामने आई है कि उक्त शख्स ने एसएमसी का सदस्य बनने के लिए गलत जानकारी दी थी। कोई शख्स एसएमसी का सदस्य तभी बन सकता है जब वह उस स्कूल के छात्र या छात्रा का कानूनी अभिभावक हो। मगर बताया जा रहा है कि एसएमसी प्रधान ने कानूनी तौर अपनी पत्नी के पहले पति से हुए बच्चे को गोद नहीं लिया है।
हालांकि, स्कूल के एक अध्यापक का यह भी कहना है कि एसएमसी प्रधान का फेल होने वाला बेटा एक महीने स्कूल से गायब रहा था, जिसे बाद में पुलिस ढूंढकर लाई थी। उस दौरान एसएमसी प्रधान ने खुद लिखकर स्कूल को जानकारी दी थी कि उनका अपने बेटे पर कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में जब यह बच्चा फेल हो गया तो इसका मुद्दा बनाकर एसएमसी प्रधान ने अध्यापकों और स्कूल प्रशासन को धमकाना शुरू कर दिया।
शिक्षा विभाग पर भी सवाल
यही नहीं, एक महीना पहले इस स्कूल में आई प्रधानाचार्या के खिलाफ भी यह कहते हुए एसएमसी प्रधान ने अन्य सदस्यों को विश्वास में लिए बिना अपने ही स्तर पर सवाल उठा दिए कि वह इस पद लायक नहीं हैं। इसलिए उनका तबादला कर दिया जाए। इस संबंध में एजुकेशन सेक्रेटरी ने जांच के आदेश दे दिए जबकि नियमों के अनुसार एसएमसी की बात को तवज्जो दी जाती है, एसएमसी प्रधान को नहीं। यानी शिक्षा विभाग पर ही सवाल उठा दिए गए और शिक्षा विभाग ने यह तक जांच करने की कोशिश नहीं की कि प्रधान एसएमसी की तरफ से ये बातें कह रहा है या अपने स्तर पर।
आश्चर्य तो यह भी है कि शिक्षा विभाग ने इसमें जांच में प्रक्रिया के जरूरी प्रोटोकॉल को भी फॉलो नहीं किया। क्योंकि, शिक्षा विभाग ने जिसे प्रिंसपल की जिम्मेदारी दी… वह अचानक अयोग्य कैसे हो गईं। दूसरी बात की महज एक महीने के भीतर किसी की योग्यता और अयोग्यता का पैमाना कैसे सेट किया जा सकता है….। ख़ैर फिलहाल खबरें आ रही हैं कि सरकार इस प्रधानाचार्या के तबादले की तैयारी में हैं।