लेखक- अवय शुक्ला, पूर्व वरिष्ठ IAS अधिकारी
मेरा यह हमेशा से मानना रहा है कि कई मायनों में राजनेता नौकरशाहों की तुलना में एक बेहतर इंसान होते हैं. वे हमारे (नौकरशाह) आत्मकेंद्रित, बंदगला और खुद को महत्वपूर्ण समझने के मुकाबले कहीं ज्यादा सहानुभूति रखने वाले, संवेदनशील और सही मायनों में मददगार होते हैं. जीएस बाली जिन्होंने दिल्ली के एक अस्पताल में मात्र 67 साल की आयु में दुनिया से रुख्सत हो लिया, वे मेरी इस अवधारणा को शत-प्रतिशत पूरा करने वाली शख्सित थे. मैंने ऐसा राजनेता अपने 35 साल की सेवा में नहीं देखा.
जासूसी का मजाक और मजबूत होते रिश्ते
श्री जीएस बाली को कांगड़ा के एक फायरब्रांड कांग्रेस नेता के रूप में सभी जानते थे. सदी के खत्म होने के दौरान मुझे उनके साथ काफी अर्सा पहले काम करने का मौका मिला. बतौर ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी मैं उनके साथ जुड़ा. उस दौरान उनके पास पर्यटन का भी चार्ज था. पहली दफे में जब मैं उनसे शिष्टाचार भेंट के लिए गया तो उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि मुख्यमंत्री ने उनपर नज़र रखने के लिए मुझे भेजा है. (कई मामलों में जीएस बाली और मुख्यमंत्री एक राय नहीं रखते थे.) हालांकि, कुछ ही महीनों में उन्हें यह इत्मीनान हो गया कि मैं उनपर जासूसी नहीं कर रहा था. उन्होंने कई बदलाव करते हुए मुझे पर्यटन का भी चार्ज सौंप दिया. इस तरह से हमारा उनके साथ एक अनोखा रिश्ता उनके AIIMS में निधन तक कायम रहा.
GS बाली: सुबह दिल्ली, शाम नगरोटा और अगली सुबह शिमला
श्री जीएस बाली कभी भी घिसेपिटे पारंपरिक मंत्रियों की तरह नहीं थे. वह सुपर चार्ज एनर्जी का एक भरपूर भंडार थे. ताबड़तोड़ काम का अंदाज, हमेशा नए आइडियाज से लैस, हमेशा यात्रा करते हुए. मसलन, सुबह दिल्ली हैं तो शाम को नगरोटा में और अगली सुबह वह शिमला अपने दफ्तर में मिलते थे. जहां वे बसों के रूट का निरीक्षण कर रहे होते थे. वह कभी भी बाकी मंत्रियों की तरह अपने अधिकारियों पर निर्भर नहीं रहते थे. अपना काम खुद करते थे. बसों की चेंकिंग और आधी रात को नाका वे खुद ही लगा देते थे.
HRTC बसों के पसंदीदा ढाबों पर रुकते थे, ताकि यह पड़ताल कर सकें कि यात्रियों को परेशान तो नहीं किया जा रहा. खुद बस डिपो और बस स्टैंड जाते थे और यूनियन लीडरों से मिलकर उनके शिकवे-गिले सुनते थे. यहां तक कि उन्होंने अपना निजी फोन नंबर HRTC की बसों में लगवा दिया था ताकि कोई भी पीड़ित यात्री आधी रात को भी कॉल करके अपनी परेशानी बता सके. यात्रियों ने भी जमकर अपनी शिकायतें भी कीं. बाली जी ने सारे फोन कॉल खुद ही उठाए और तमाम डिविजिनल और रिजनल मैनेजरों की गहरी नींद हराम हो चुकी थीं. कईयों के मामले में नतीजा ये रहा कि उनकी पत्नियों ने उन्हें बेडरूम से हमेशा के लिए बेदखल कर दिया.
होम स्टे, मॉडर्न बस स्टैंड, जाखू और रोहतांग पास रोप-वे दुनिया-जहान घूम चुका शख्स, हमेशा नए और ऊर्जावान विचारों का स्वागत किया और अपना पूरा समर्थन भी दिया. तमामों कार्यों में से कुछ सफल हुई परियोजनाओं में रोहतांग पास के लिए रोप-वे, बिजली महादेव और त्रियुंड शामिल हैं. इनके अलावा हिमाचल में लंबी रूटों के लिए वॉल्वो बसों का संचालन, जाखू रोप-वे, शिमला और कांगड़ा में पीपीपी मोड पर ISBT में आधुनिक बस स्टैंड और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम- स्टे स्कीम जबरदस्त ढंग से सफल रहीं. आज की तारीख में तकरीबन 3 हजार से ज्यादा होम स्टे हिमाचल प्रदेश में पंजीकृत हैं और इसी के बराबर होम-स्टे बिना रजिस्टर्ड चल रहे हैं.
क्षुद्र राजनीति ने छीन लिया ‘स्की विलेज’ का सपना
हालांकि, दुख की बात ये है कि सबसे बड़ा ड्रीम प्रॉजेक्ट जो कि उनकी विरासत का एक अहम हिस्सा होता, वह क्षुद्र राजनीति का शिकार हो गया और कभी भी अपने वजूद की सुबह नहीं देख पाया.
इस मेगा प्रॉजेक्ट से मेरा तात्पर्य स्की विलेज परियोजना से है. यह योजना 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की थी. (यह तत्कालीन भारत में पर्यटन के क्षेत्र की सबसे बड़ी FDI थी). जिसे दुनिया की विख्यात कंपनी हेनरी-फोर्ड के ग्रैंडसन ने पूरा करने का जिम्मा उठाया था. यह प्रॉजेक्ट मनाली के पास पलचान में पूरा होने वाला था. इसमें 1000 फिट की ऊंचाई पर स्की लिफ्ट, एक इंटरनेशनल लेवल का 5 स्टार होटल और कॉटेज शामिल थे. इसमें पारंपरिक हैंडिक्राफ्ट विलेज, हेलीपैड और भूंतर एयरपोर्ट का अपग्रेडेशन भी शामिल था और यह सारा कुछ कंपनी अपने खर्चे पर करने वाली थी. अगर यह प्रॉजेक्ट पूरा हो जाता तो मनाली आज एक ओवर-प्राइस्ड स्लम से उठकर विश्व-स्तरीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन होता.
श्री बाली और मैंने इस प्रॉजेक्ट के लिए खुद को झोंक डाला था और इसे प्रॉसेस करने में हमने अपना काफी वक्त दिया. जिसमें हमने पर्यावरण सेफगार्ड, दूसरे महकमों के साथ तालमेल, तमाम अप्रूवल और स्थानीय लोगों के हक-हकूक को सुरक्षित रखने के क्लॉज शामिल किए. मैं खुद स्की –लिफ्ट के लिए तीन दिनों तक तमाम जगहों का दौरा किया ताकि यह निश्चित हो सके कि इसमें कम पेड़ों और भूमि की जरूरत पड़े. यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह भी इस परियोजना को लेकर उत्साहित थे और पूरे दिल हमें सपोर्ट भी किया. यह शत-प्रतिशत तय था कि इसके चलते हिमाचल अंतरर्राष्ट्रीय टूरिस्ट पटल पर छा जाता और इसके जरिए रोजगार, टैक्सेज और ब्रांडिंग तैयार होती.
लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया.
2008 में विधानसभा चुनाव हुए और सरकार बदल गई. श्री धूमल के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी और जैसा कि परंपरागत राजनीति का तकाजा होता है, जिसमें यह तय किया गया कि कांग्रेस सरकार को ऐसे प्रॉजेक्ट का क्रेडिट नहीं मिलना चाहिए. स्की गांव का विरोध तेज कर दिया गया था. वफादार अधिकारियों की एक समिति को MOU को कैंसिल करने का जिम्मा सौंप दिया गया. हालांकि, अब ऐसी योजना के लिए फिर से एक जीएस बाली जैसे वीजनरी नेता की जरूरत होगी और आज के हालात में ऐसा कोई दिखाई नहीं देता.
ग्रेट टास्कमास्टर और हर किसी का मददगार
जीएस बाली का सामाजिक नेटवर्क भी जबरदस्त था. वे सचिवों से लेकर सरकार तक सभी को जानते थे. मुरथल में सुखदेव और पहलवान ढाबों के मालिकों को, मुंबई के फिल्मी सितारों से लेकर चेन्नई के उद्योगपतियों तक पहचान थी. और उन्होंने इन रिश्तों को निभाने के लिए दर्द उठाए. एक मंत्री के रूप में एक हार्ड टास्कमास्टर, जिसने तमाम अधिकारियों को उनका वाजिब सम्मान दिया. इतिहास लेकर आज की तारीख तक किसी भी मंत्री के उतने मित्र नौकरशाही में नहीं होंगे जितने जीएस बाली के थे. वह कभी भी जन्मदिन और शादी की सालगिरह नहीं भूलते थे और दुख की घड़ी में हमेशा मदद के लिए प्रकट हो जाते थे.
मेरे रिटायरमेंट के 7 महीने बाद मेरा छोटा बेटा चेन्नई में एक भयानक दुर्घटना का शिकार हो गया. वह अस्पताल के ICU में एक महीने तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहा. नीरजा और मुझे चेन्नई भागना पड़ा. एक ऐसी जगह जहाँ हम किसी को नहीं जानते थे: हमें यह भी नहीं पता था कि हम कहां रहेंगे. ऐसे समय में तमाम आईएएस नेटवर्क पस्त हो चुके थे. फिर मैंने श्री जीएस बाली को फोन किया. वह अगली ही फ्लाइट से चन्नई पहुंच गए और अपने जानने वालों से संपर्क किया. उन्होंने हमारे ठहरने के लिए सही व्यवस्था कराई. इसके बाद भी हमारे संपर्क में लगातार बने रहे.
2007 में जब मैं खुद रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण गंभीर हालत में शिमला के IGMC में था, तो उन्होंने मुझे दिल्ली भेजने के लिए मुख्यमंत्री पर हेलीकॉप्टर से छोड़ने के दबाव बनाया. अंतत: इसकी जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने में अपनी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. बाली एक लेन-देन करने वाली शख्सियत नहीं थे. एक बार जब आपने उनका विश्वास हासिल कर लिया और वह आपको पसंद करने लगे, तो वह आजीवन के लिए आपके मित्र थे. उन्होंने हमेशा जितना लिया उससे कई ज्यादा लोगों को दिया.
बेहतरीन मेजबान और हंसी-मजाक का भंडार वह एक अच्छे मेहमाननवाज और गलतियों के प्रति उदार थे. प्रत्येक विदेश यात्रा के बाद वह अपने सभी अधिकारियों को स्कॉच और परफ्यूम की बोतलें बांटते थे, मानो अब उनका प्रॉडक्शन खत्म होने वाला हो. धर्मशाला में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान ब्यूरोक्रेसी के साथ-साथ खुद एक सह-मेजबान की भूमिका में आ जाते थे. क्योंकि, उनका घर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर कांगड़ा में स्थित था. उन्होंने हमेशा अपने घर पर हमारे लिए बेहतरीन सिंगल माल्ट और तंदूरी डिशेज वाली बड़ी पार्टी रखी. कई रातें नीरजा और मैंने उनके स्थान पर बिताई हैं. जहां पर राजनेताओं और अधिकारियों की तमाम अनकही और अनसुनी बातें हमें सुनाते और ऐसी गॉसिप का उनके पास ढेरों खजाना होता था.
उनका अचानक से रुख्सत हो जाना एक ब्लैक होल के निर्माण की तरह है. एक तारा अपने आप में टूट कर गिर चुका है. जहां वह कभी चमकता था, अब वहां खालीपन है. श्री बाली ने अपने जीवन के हर मिनट को पूरी तरह से जिया. हमेशा बुद्धिमानी से नहीं बल्कि संपूर्णता के साथ. उनके पास अभी भी करने और देने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन मुझे ऐसा लगता है, जैसे उन्होंने जो कुछ भी किया, वह जाने की जल्दी में था. कवि एडना सेंट विंसेंट की ये पंक्तियां उनके जीवन काफी हद तक परिभाषित करती हैं.
“जलती है मेरी मोमबत्ती दोनो सिरों पर
पूरी रात न चल सकेगी
आह!मेरे दुश्मनों, ओह! मेरे दोस्तों,
यह कितनी सुखद रौशनी देती है मगर।।
(लेखक- अवय शुक्ला, पूर्व वरिष्ठ IAS अधिकारी
2010 में अवय शुक्ला रिटायर्ड हो गए और फिलहाल दिल्ली में रहते हैं. लेकिन, शिमला में भी इनका एक छोटा सा कॉटेज हैं. पर्यावरण से लगाव होने के नाते लगातार दिल्ली से शिमला का चक्कर लगाते रहते हैं)