जर्मनी के बाद अब हिमाचल के ऊना में मोरिंगा की खेती की जाएगी। वेला इंडिया नामक कम्पनी अब ऊना में इसकी खेती करने की योजना बना रही है। जिसके लिए कंपनी ने कदमताल शुरू कर दी है। कम्पनी का दावा है कि मोरिंगा की खेती कर औषधि बनाकर इस्तेमाल में लाकर 300 बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। महज 4 से 5 दिनों के इस्तेमाल में ही इसका रिजल्ट दिखना शुरू हो जाता है।
कम्पनी की तरफ से जर्मनी से आए प्रतिनिधि हेरी ने बताया कि वह पिछले लंबे अरसे से मोरींगा की औषधि तैयार कर विदेशो में बिक्री कर रहे हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। कोई भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। उन्होंने बताया कि मूलतः यह हिमाचल में उगने वाली औषधि है। इसलिए हम चाहते हैं कि इसे हिमाचल के ऊना में ही तैयार किया जाए। मोरिंगा की पत्तियों को 8 घण्टे के अंतराल में मशीन में रखकर पाउडर बनाया जाता है फिर इसे कैप्सूल बनाया जाता है। अगर ऊना में कहीं पर मोरिंगा की खेती होती है तो इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल सकेगा।
मोरिंगा दुनिया में सबसे पौष्टिक पौधे माना जाता है। इसमें सभी विटामिन, खनिज, ट्रेस तत्त्व आवश्यक एमिनो एसिड, ओमेगा 3 – 6-9 आदि इस पौधे में उच्च घनत्व में निहित हैं। इसमें 48 एंटीऑक्सिडेंट्स, 26 एंटी- इंफ्लैमेटरी और 13 एनाल्जेसिक पदार्थों के साथ- साथ पौराणिक टी ग्रीष्म ऋतु ज़ीटिन (युवा हार्मोन का फव्वारा) को छोड़कर सभी पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों से आते हैं जो पूरी तरह से मेल खाते हैं और इस प्रकार शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाते हैं। जहां वह आपकी मदद कर सकते हैं। इससे केंसर, शुगर सहित अन्य रोग भी ठीक हो सकते हैं।
साउथ एरिया में हो रहा इस्तेमाल
कंपनी के प्रतिनिधि ने बताया कि भारत के साउथ में मोरिंगा का ज्यादा प्रचलन हो रहा है। लोगों में इससे मिलने वाले लाभों के बारे में जानकारी है और वह बीमारियों से दूर रह रहे हैं। जबकि साउथ में इसकी फसल तैयार नहीं होती। हम चाहते हैं कि जब भारत से विदेश में लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं तो हम भारतीय इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते। जबकि यह भारत में ही तैयार होता है। उन्होंने कहा की लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।