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हमीरपुरः प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना खुशियां लाई, कृषि लागत घटी और बढ़ी किसानों की कमाई

<p>हिमाचल प्रदेश में कृषि क्षेत्र का राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 9 प्रतिशत योगदान है। इस क्षेत्र से लगभग 62 प्रतिशत लोगों को सीधे तौर पर आजीविका प्राप्त है। प्रदेश सरकार फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए नई तकनीकें अपनाने पर बल दे रही है। कृषि में विविधता लाने के लिए नई प्रोत्साहन योजनाएं आरम्भ की गयी हैं। प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजना प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में ऐसा ही एक अभिनव प्रयास है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को सशक्त बनाने के साथ-साथ रसायनमुक्त अन्न उगाकर इस धरा को जहर मुक्त करने पर भी बल दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती विधि के चार प्रमुख स्तम्भों में बीजामृत, जीवामृत-घन जीवामृत, आच्छादन और वाफ्सा हैं। इसके लिए देशी गाय पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि देशी गाय के गोबर और गौमूत्र से ही यह उत्पाद तैयार किए जाते हैं। देशी नस्ल की गाय खरीदने पर 50 प्रतिशत उपदान का प्रावधान किया गया है, जिसकी अधिकतम सीमा 25 हजार रुपए है। देशी गाय के परिवहन के लिए 5 हजार रुपए की अतिरिक्त सहायता प्रदान की जा रही है।</p>

<p>इस योजना के अंतर्गत गौशालाओं को पक्का करने और गौमूत्र और गोबर एकत्रित करने के उद्देश्य से गौशाला बदलाव के लिए भी 80 प्रतिशत उपदान दिया जा रहा है। इसकी अधिकतम सीमा 8 हजार रुपए प्रति किसान है। प्राकृतिक कृषि में प्रयोग होने वाले उत्पाद बनाने के लिए किसानों को ड्रमों की खरीद पर 75 प्रतिशत उपदान दिया जाता है, जो प्रति किसान अधिकतम तीन ड्रमों पर उपलब्ध है। उपदान की अधिकतम सीमा 750 रुपए प्रति ड्रम है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक गांव में प्राकृतिक कृषि संसाधन भण्डार खोलने के लिए 50 हजार रुपए तक की सहायता भी उपलब्ध है। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती करने वाले सभी किसान इस योजना के लिए भी पात्र हैं। योजना का लाभ उठाने के लिए वे जिला स्तर पर परियोजना निदेशक (आत्मा) एवं खंड स्तर पर कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के खंड तकनीकी प्रबंधक तथा सहायक तकनीकी प्रबंधक के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।</p>

<p>योजना लागू होने के उपरांत इसके प्रति किसानों का रूझान बढ़ रहा है। प्रदेश स्तर पर गत दो सालों में 1 हजार से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें 44,325 किसानों को प्रशिक्षित किया गया। इनमें से 39,124 किसान खेती की इस पद्धति को अपना चुके हैं और 2,664 पंचायतें प्राकृतिक खेती योजना के अंतर्गत लायी जा चुकी हैं। हमीरपुर जिला में वर्तमान में 227 पंचायतों के 4,779 किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। कृषि विभाग की ओर से इन्हें आवश्यक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। वर्तमान में 4,240 किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। प्राकृतिक खेती अपनाने के उपरांत किसानों के कृषि व्यय में कमी के साथ उत्पाद और आय में आशातीत बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है। जिला में किसान प्रति बीघा में औसतन प्रति मौसम चक्र 12 से 24 हजार रुपए तक का शुद्ध लाभ अर्जित कर रहे हैं।</p>

<p>प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों की बिक्री के लिए जिला प्रशासन की पहल पर हमीरपुर में बचत भवन के समीप स्थान उपलब्ध करवाया गया है। जहां सप्ताह में दो दिन किसान सब्जियां इत्यादि बेच रहे हैं। जनमंच के अवसर पर भी बिक्री के लिए स्टॉल लगाए जा रहे हैं। यहां शलम, मूली, अदरक, पपीता, ब्रॉकली, गोभी, आलू, सूखे टमाटर, देशी हल्दी के अलावा बासमती व मक्की के आटे की बिक्री की जा रही है। किसान मक्की, गेहूं, सोयाबीन और चावल जैसे अन्न भी प्राकृतिक खेती के माध्यम से उगा रहे हैं। प्रदेश सरकार की इस योजना से राज्य का किसान रसायन मुक्त, स्थायी, लाभप्रद एवं स्वस्थ परिवेश वाली खेती की ओर उन्मुख हुआ है और आश्वस्त एवं संपन्न बनने की राह पर भी अग्रसर है।</p>

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