शिमला: कोरोना काल हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों के लिए संजीवनी बूटी साबित हुआ है। कोरोना पाबंदियों के चलते जहां कई अविभावकों से रोजगार छीन गया वहीं निजी स्कूलों की भारी-भरकम फीस उनकी परेशानी का सबब बनी। सरकार ने भी निजी स्कूलों का ही पक्ष लिया और मजबूरन अविभावकों को सरकारी स्कूलों का रुख करना पड़ा।
हिमाचल में कोरोना के बीच सरकारी स्कूलों में 10 हज़ार नए दाखिले हुए हैं। हालांकि ये आंकड़ा इससे भी ज़्यादा हो सकता है। प्रदेश में 27 सितंबर से स्कूल फिर खुल रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की वृद्धि को देखते हुए सरकार ने 8,000 मल्टी पर्पस वर्कर रखने का निर्णय लिया है। प्रारंभिक शिक्षा में शिक्षकों व अन्य स्टॉफ को 45,000 से 48,000 करने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है।
सरकरी स्कूलों में आई थी दाखिलों में कमी..
सरकारी स्कूलों के लिए अविभावकों का ये फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है। कुछ वर्षों में शहरों से लेकर गांव तक निज़ी स्कूलों की आई बाढ़ ने सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या को कम कर दिया था। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी स्कूलों की संख्या 50 फीसदी की कमी आई थी।
मार्च 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक 6,127 सरकारी स्कूलों में 20 से कम छात्र थे। इनमें 4,994 प्राथमिक स्कूल, 1,092 माध्यमिक स्कूल, 32 हाई स्कूल और 9 सीनियर सेकंडरी स्कूल शामिल है। कुछ स्कूलों में तो छात्रों की संख्या 5 से 10 रह गई थी। हिमाचल शिक्षा विभाग के सचिव राजीव का कहना है कि ये संख्या इससे भी ज़्यादा हो सकती है।
आपको बता दें कि सरकारी स्कूलों में छात्रों को निशुल्क वर्दी दी जाती है। सरकार साल में दो बार वर्दी देती है। इस बार सरकार ने 13,000 से 14,000 विद्यार्थियों के लिए अतिरिक्त वर्दी का टेंडर किया है। सरकार स्कूल के विद्यार्थियों को फ़ीस माफ़ी के साथ मिड डे मील के साथ स्कूल बैग तक मुहैया करवाती है।
निजी स्कूलों की फीस कम करने के लिए अडे़ अविभावक
वहीं निजी स्कूलों की मनमानी फ़ीस को लेकर अविभावक मोर्चा खोले हुए हैं। पर सरकार निजी स्कूलों की तरफदारी करती दिख रही है। छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा का कहना है कि सरकार निज़ी स्कूलों के दबाब में फ़ीस को कम करने में नाकाम रही है।
महरा ने कहा, “कोरोना काल में जब कई अभिभावकों का रोजगार छीन गया ऐसे में उनके पास फ़ीस देने तक के पैसे नही है। बाबजूद इसके सरकार को अभिभावकों की नही बल्कि निज़ी स्कूलों की चिंता है।
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