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प्रदेश भर में 108-102 एंबुलेंस सेवा ठप, इमरजेंसी में लोग ढूंढ रहे प्राइवेट गाड़ियां!

पी. चंद |

अपनी मांगों को लेकर शिमला में 108-102 इमरजेंसी एंबुलेंस कर्मियों की हड़ताल 8वें दिन भी जारी है। सोमवार को कर्मियों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर डीसी ऑफिस से सचिवालय तक प्रदर्शन किया। कर्मचारियों का आरोप है कि जीवीके कंपनी सरकार को गुमराह कर रही है और उनके साथ नाइंसाफी की जा रही है।

प्रदेश भर में बंद सेवा, आ रही दिक्कतें

कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से प्रदेश के सभी छोटे-बड़े अस्पतालों में इमरजेंसी सेवा पूरी तरह ठप है। कई जगहों पर कर्मचारियों ने 108 को तो बंद रखा, लेकिन महिला प्रसूता 102 एंबुलेंस को जारी रखा है। वहीं, सरकार का कहना है कि कुछ ही जिलों में ये सेवा नहीं है, लेकिन बात की जाए बड़े अस्पतालों की तो प्रदेश के दूसरे बड़े अस्पताल टांडा में भी एंबुलेंस सेवा पूरी तरह ठप पड़ी है। यही हालात मंडी और बाकी सभी जिलों के भी बताए जा रहे हैं। हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि कंपनी जीवीके सरकार को झूठ बोल रही है कि सिर्फ 4 जगहों पर ये सेवा बंद है, जबकि प्रदेश भर के कर्मचारी उनके साथ हैं।

सरकार ने लगाया एस्मा

हड़ताल कर्मियों पर सरकार एस्मा भी लगा चुकी है, लेकिन बावजूद इसके अपनी मांगों के लेकर अड़े कर्मचारी हड़ताल ख़त्म नहीं कर रहे। स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार ने कहा था कि कर्मचारियों के साथ सारी बात हो चुकी थी, बावजूद इसके भी वे हड़ताल में गए। इसके चलते एस्मा लगाया गया है।

क्या है कर्मचारियों की मांगें

कर्मचारियों का कहना है कि जीवीके कंपनी के तहत काम करके उनका शोषण हो रहा है। सरकार को झूठ बोलकर कंपनी कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं देती, जबकि इमरजेंसी में कर्मियों को जरूरत से ज्यादा काम करना पड़ता है। उनकी मांग है कि सरकार उनके वेतन मान, ओवर टाइम और उन्हें NRHM के तहत लाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी हड़ताल जारी रखने की भी चेतावनी दी।

पहले भी सामने आई थी कंपनी की नाकामियां

इससे पहले भी जीवीके कंपनी की कई नाकामियां सामने आ चुकी हैं। कुछ ही महीने पहले स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार ने खुद ऑन रोड 108 एंबुलेंस की जांच की थी, जिसमें कई कमियां पाई गई थीं। मंत्री ने उस समय मौके पर कर्मचारियों को लताड़ भी लगाई थी और कंपनी को नोटिस देने की बात कही थी। लेकिन बावजूद इसके भी कंपनी पर भरोसा किया जा रहा है। याद रहे कि उस समय एंबुलेंस में न तो गैस सिलेंडर पूरे थे और न ही स्टेचर और बाकी ट्रीटमेंट की चीजें।

ये है स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ करने वाली सरकार!

प्रदेश को 4 बड़े अस्पताल देने के ढिंढोरा पीटने वाली जयराम सरकार धरातल पर किसी भी स्वास्थ्य संस्थान को पूरी सुविधाएं देने में फेल साबित होती दिख रही है। एक ओर जहां डॉक्टरों की कमी से प्रदेश के अस्पताल बीमार पड़े रहे है, तो वहीं अब एंबुलेंस कर्मचारियों की हड़ताल ने भी स्वास्थ्य संस्थानों की कमर तोड़ रखी है। कई दुर्गम इलाकों में लोगों को इससे भारी दिक्कते आ रही हैं, लेकिन ने तो कर्माचारी और न ही सरकार इस पर कोई ग़ौर कर रही है।  

जीवीके कंपनी के अधिकारी को विजिलेंस टीम ने पकड़ा!

मिली जानकारी के मुताबिक, जीवीके कंपनी के अधिकारी को विजिलेंस टीम ने ग़िरफ्तार भी किया था। अधिकारी पर फंड न देने या फिर किसी के पैसे की हेरफेर के आरोप लगे थे। हालांकि, इसकी कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

क्या है एस्मा…??

एसेंशियल सर्विस मैनेजमेंट एक्ट (ASMA) हड़ताल को रोकने हेतू लगाया जाता है। एस्मा लागू करने से पूर्व इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्य माध्यम से सूचित किया जाता है और ये 6 माह तक वैलिड होता है। एस्मा लागू होने के उपरान्त यदि कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध एवं दण्डनीय है। क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 (5 आफ 1898) के अन्तर्गत एस्मा लागू होने के उपरान्त इस आदेश से सम्बन्धि किसी भी कर्मचारी को बिना किसी वारन्ट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

सरकारें एस्मा लगाने का फैसला इसलिए करती हैं, क्योंकि हड़ताल की वजह से लोगों के लिए आवश्यक सेवाओं पर बुरा असर पड़ने की आशंका होती है। जबकि आवश्यक सेवा मेंटेनेंस कानून यानी एस्मा वह कानून है, जो अनिवार्य सेवाओं को बनाए रखने के लिए लागू किया जाता है। इसके तहत जिस सेवा पर एस्मा लगाया जाता है, उसके कर्मचारी हड़ताल नहीं कर सकते। नहीं मानने वाले हड़तालियों को छह माह तक की कैद या ढाई सौ रूपये दंड अथवा दोनों हो सकते हैं।