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हिमाचल: सिविल इंजीनियर ने शुरू की काजू की प्रोसेसिंग-पैकेजिंग, हर महीने कमा रहे 1 लाख

बीरबल शर्मा |

पेशे से सिविल इंजीनियर आशीष कुमार की सफलता की कहानी स्वाद, सेहत, स्वरोजगार और सरकारी सहयोग के शानदार मेल से युवा उद्यम का बेहतरीन उदाहरण बन गई है। मंडी जिले की सुंदरनगर तहसील के रामपुर, कनैड़ के 32 वर्षीय आशीष ने मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना में सरकारी मदद से काजू की प्रोसेसिंग-पैकेजिंग में स्वरोजगार का स्वाद पाया है। वे आज सारे खर्चे निकाल के महीने के 1 लाख रुपये कमा रहे हैं।

आशीष बताते हैं कि यूं तो उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, पर रोजगार मांगने की बजाय रोजगार देने वाला बनने की मन में इतनी मजबूत चाह थी कि अपना काम धंधा शुरू करने की ठान ली। सेहत बनाने और दिमाग बढ़ाने के लिए ड्राई फ्रूट्स का राजा माने जाने वाले काजू के काम में अपना इंजीनियरिंग वाला दिमाग लगाया जिससे उन्हें अब जीवन में स्वरोजगार का स्वाद मिल रहा है।

अपने पैरों पर खड़े होने के चाहवानों के लिए वरदान है मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना

बता दें, अपना काम धंधा शुरु करने के चाहवान युवाओं के लिए हिमाचल सरकार की मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना वरदान बनी है। आशीष बताते हैं कि मार्च 2020 में मुख्यमंत्री स्वावलम्बन योजना में उनके प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली थी। कोविड 19 के चलते काम शुरु करने में 6-8 महीने निकल गए। नवंबर 2020 से ‘आरडा कैश्यू हाउस’ नाम से अपना यूनिट आरंभ किया। इसके लिए योजना के तहत बैंक से 27 लाख रुपये का केस बनाया। जिस पर सरकार ने 5.11 लाख रुपये की सब्सिडी दी। काम में पूरी मेहनत झोंक दी, आज माता-पिता के आशीर्वाद, भगवान की कृपा और सरकार की मदद से अच्छा काम चल रहा है।

महिलाओं को घरद्वार पर रोजगार

रामपुर, कनैड़ में यूनिट लगने से ग्रामीण महिलाओं को घर पर ही रोजगार उपलब्ध हो रहा है। यूनिट में काम कर ही बिमला, राजकुमारी, गीतादेवी और कुन्ता सहित अन्य महिलाओं का कहना है कि घरद्वार पर रोजगार से वे आर्थिक रूप से सक्षम हुई हैं। आशीष बताते हैं कि काजू की साइजिंग और ग्रेडिंग के लिए सूरत गुजरात से मशीनरी लाई गई है। इसके लिए गांव की 7 महिलाएं प्लांट में रेगुलर काम कर रही हैं। इसके अलावा गांव की 20 से ज्यादा महिलाओं को समय समय पर काजू की छंटाई के काम दिया जाता है। वे छंटाई के लिए काजू अपने घर ले जाती हैं जिससे वे अपनी फुरसत के मुताबिक काम कर सकती हैं। इसके लिए उन्हें 25 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से भुगतान किया जाता है। वहीं तकनीकी काम काज के लिए दूसरे राज्यों के 5 लोग भी प्लांट में काम पर रखे हैं।

रोजाना प्रोसेस किया जाता है 100 किलो काजू, मंडी-हमीरपुर-कुल्लू में सप्लाई

आशीष बताते हैं कि वे साल में 4 महीने भारत के अलग अलग राज्यों से कच्चा काजू मंगाते हैं, बाकी 8 महीने अफ्रीका से काजू मंगाया जाता है। इसकी यहां प्रोसेसिंग और पैकेजिंग कराते हैं। इस काजू की मंडी के साथ साथ हमीरपुर और कुल्लू में भी सप्लाई हो रही है। अलग अगल क्वालिटी के काजू की बाजार में विभिन्न दरों पर बिक्री होती है। ये 600 से लेकर 1600 रुपये तक प्रति किलो के हिसाब से बिकता है । अभी फैक्ट्री में रोजाना करीब 100 किलो काजू प्रोसेस होता है। इसके बाद पैकिंग की जाती है। आगे इसे रोजाना 500 किलो तक बढ़ाने की सोच रहे हैं। इसके लिए वे साइजिंग और ग्रेडिंग की नई मशीनरी लाने वाले हैं।