➤ मुख्यमंत्री ने आपदा प्रबंधन पर विशेष बैठक में बादल फटने की घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन कराने के निर्देश दिए
➤ प्रदेश में हाल ही में हुई 19 बादल फटने की घटनाओं से जानमाल का व्यापक नुकसान हुआ
➤ सुरक्षित निर्माण, पूर्व चेतावनी तंत्र और आपदा न्यूनीकरण परियोजना पर सरकार ने विस्तृत रोडमैप रखा
Himachal Pradesh Disaster Management: मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि आपदाएं प्रदेश के लिए भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी हैं और इन्हें रोकने या उनके प्रभाव को कम करने के लिए सरकार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना ही होगा। उन्होंने राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की 9वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए बादल फटने की घटनाओं के बढ़ते खतरे पर गंभीर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि प्रदेश में इस वर्ष 19 बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं, जिनसे जानमाल का भारी नुकसान हुआ। इस मुद्दे को उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष भी उठाया है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि मंडी जिला में हाल ही में 123 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई जबकि शिमला जिला में 105 प्रतिशत अधिक बारिश हुई, जिससे कई भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं हुईं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक पद्धति से मलबे के निस्तारण की अनदेखी की वजह से हालात बदतर हो रहे हैं। इसलिए अब निर्माण गतिविधियों के दौरान वैज्ञानिक प्रणाली को अनिवार्य किया जाएगा।
उन्होंने निर्देश दिए कि एसडीएमए (State Disaster Management Authority) आमजन को नियमित मौसम अपडेट उपलब्ध कराए और सोशल मीडिया पर फैल रही भ्रामक जानकारियों का तत्काल खंडन करे। उन्होंने स्पष्ट किया कि आधिकारिक अलर्ट जारी करने का अधिकार केवल एसडीएमए को है और लोग किसी अनधिकृत जानकारी पर विश्वास न करें।
मुख्यमंत्री ने सुरक्षित निर्माण को बढ़ावा देने पर बल देते हुए कहा कि सभी लोगों को नदियों और नालों से कम से कम 100 मीटर दूर मकान बनवाने के लिए प्रेरित किया जाए। सरकारी विभागों को निर्देश दिए गए कि वे भी अपनी परियोजनाएं जलधाराओं से 100 मीटर दूर ही स्थापित करें।
एसडीआरएफ (State Disaster Response Force) को और मजबूत बनाने के लिए पालमपुर (कांगड़ा) में इसका नया परिसर बनाने का काम शुरू किया गया है। इसके साथ ही राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना हिमाचल लोक प्रशासन संस्थान, शिमला में की जाएगी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इस पर अनुसंधान एवं विकास कार्य करेगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में 891 करोड़ रुपये की आपदा जोखिम न्यूनीकरण परियोजना भी लागू हो रही है, जिसमें पूर्व चेतावनी तंत्र, संसाधनों की मजबूती, और सहायक शमन उपायों को मार्च 2030 तक पूरा किया जाएगा। इस परियोजना के तहत राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को पूरी तरह सुदृढ़ किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राहत एवं पुनर्वास कार्यों के लिए जिला प्रशासन और विभागों को 1260 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त 138 करोड़ रुपये की राशि न्यूनीकरण कोष से दी गई है। उन्होंने ग्लेशियर झीलों का अध्ययन कराने और स्थानीय समुदाय को जागरूकता अभियानों में शामिल करने पर भी जोर दिया।
बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार (मीडिया) नरेश चौहान, मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना, अतिरिक्त मुख्य सचिव के.के. पंत, सचिव एम. सुधा देवी, डॉ. अभिषेक जैन, एडीजीपी सतवंत अटवाल, अभिषेक त्रिवेदी, और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।



