➤ हिमाचल सरकार छोटे सोलर कोल्ड स्टोर के लिए देगी 50 फीसदी सब्सिडी
➤ 20 लाख लागत वाले कोल्ड स्टोर के लिए 10 लाख तक की मदद मिलेगी किसानों को
➤ ईईएसएल के साथ समझौता, बैंक लोन की नहीं होगी जरूरत
Himachal cold storage subsidy scheme: हिमाचल प्रदेश के किसान-बागवानों के लिए एक बड़ी राहत और नवाचार से जुड़ी सौगात सामने आई है। अब राज्य सरकार 500 कार्टन की क्षमता वाले सोलर पावर्ड माइक्रो कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स स्थापित करने पर 50 फीसदी सब्सिडी देगी। प्रत्येक यूनिट की लागत 20 लाख रुपए निर्धारित की गई है, जिसमें से सरकार 10 लाख रुपए तक की सहायता राशि सीधे लाभार्थियों के खाते में डालेगी। यह पहल एकीकृत बागवानी मिशन के तहत लाई गई है।
यह यूनिट पूरी तरह सोलर ऊर्जा से चलेगा और इसमें 48 घंटे का बैकअप होगा। केवल 6 घंटे की चार्जिंग से यह सिस्टम कार्यशील रहेगा। खास बात यह है कि बैंक लोन की आवश्यकता नहीं होगी। यह व्यवस्था एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) और हिमाचल सरकार के बागवानी विभाग के बीच हुए समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत की गई है।
यह समझौता बागवानी सचिव सी. पालरासू, उद्यान निदेशक विनय सिंह और ईईएसएल के चीफ जीएम अनिल चौधरी की उपस्थिति में शिमला में संपन्न हुआ। इसमें तय हुआ कि अगले चार वर्षों तक सिस्टम की निगरानी भी की जाएगी। किसानों को तकनीकी मानकों, स्थापना, और वार्षिक रखरखाव जैसी सेवाएं अनुबंध के अंतर्गत मिलेंगी।
उद्यान विभाग के निदेशक ने बताया कि यह योजना किसानों को ऊर्जा दक्ष समाधान देकर पश्चात फसल हानि (Post-Harvest Loss) को कम करने की दिशा में एक अहम कदम है। इससे न केवल उत्पादों के भंडारण और विपणन की सुविधा बढ़ेगी बल्कि हिमाचल प्रदेश को पर्यावरणीय रूप से सतत बागवानी राज्य बनाने में भी मदद मिलेगी।
यह पहल भारत सरकार के India Cooling Action Plan के उद्देश्यों के अनुरूप है, जिसमें ऊर्जा दक्ष शीतकरण प्रणाली और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती पर ज़ोर दिया गया है। राज्य में 5000 मीट्रिक टन मासिक कोल्ड स्टोरेज क्षमता की आवश्यकता को देखते हुए इस योजना की शुरुआत की गई है।
आवेदन प्रक्रिया की बात करें तो इच्छुक किसान अपने निकटतम उद्यान विभाग कार्यालय में जाकर आवेदन कर सकते हैं। उन्हें भूमि स्वामित्व प्रमाण, पहचान पत्र, और प्रस्तावित स्थान की जानकारी देनी होगी।
यह योजना किसानों की आय बढ़ाने, भंडारण क्षमता में सुधार करने और पर्यावरणीय संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में ऐतिहासिक मानी जा रही है।



