➤ याचिका में सरकार से गोवंश कल्याण उपकर के उपयोग पर मांगी रिपोर्ट और पारदर्शिता
➤ अदालत ने सरकार को 2023 से 2025 तक खर्च किए धन का ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया
शिमला। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रीय और राज्यीय राजमार्गों पर आवारा मवेशियों की बढ़ती संख्या को लेकर अब मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। इस समस्या पर आज हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में अधिवक्ता गणेश भरवा द्वारा एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई। याचिकाकर्ता ने अदालत का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि हाईवे पर आवारा पशुओं की मौजूदगी से सड़क हादसे लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे न केवल लोगों की जान को खतरा है बल्कि यह मानवीय दृष्टि से भी गंभीर चिंता का विषय है।
गणेश भरवा ने बताया कि याचिका आज अदालत में सीरियल नंबर तीन पर सूचीबद्ध थी। उन्होंने बताया कि चार लेन सड़कों पर वाहनों की तेज गति और बीच सड़क पर मवेशियों की आवाजाही के कारण टक्कर की घटनाएं आम होती जा रही हैं। हाल ही में एक पंजाबी गायक की दुर्घटना में मौत के बाद यह मुद्दा और अधिक गंभीर हो गया।
अधिवक्ता ने अदालत के समक्ष बताया कि विभिन्न रिपोर्टों और सर्वेक्षणों के अनुसार प्रदेश में लगभग 9,000 गौधन खुले में सड़कों पर छोड़े गए हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति न केवल ट्रैफिक सुरक्षा के लिए खतरा है बल्कि पशु कल्याण और प्रशासनिक व्यवस्था की नाकामी का भी प्रतीक है।
भरवा ने कहा कि सरकार द्वारा होटलों और रेस्तरां से प्रति ग्राहक ₹10 गोवंश कल्याण उपकर के रूप में वसूला जा रहा है, जिससे प्रति वर्ष लगभग ₹100 करोड़ की राशि एकत्र होती है। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि इस धनराशि की वास्तविक उपयोगिता और पारदर्शिता की जांच की जाए। “हमने अदालत से अनुरोध किया है कि यह देखा जाए कि अब तक यह धन किस उद्देश्य के लिए और कहां खर्च किया गया,” उन्होंने कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की और पंजाब के होशियारपुर क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां आवारा पशुओं के हमले आम हो गए हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की कि हिमाचल में ऐसी स्थिति नहीं आने दी जानी चाहिए।
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह वित्तीय वर्ष 2023 से 2025 तक गोवंश कल्याण उपकर से एकत्र धन का पूरा विवरण प्रस्तुत करे। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करे, ताकि आगामी सुनवाई में वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो सके।
मामले की अगली सुनवाई नवंबर महीने में तय की गई है। गणेश भरवा ने बताया कि इसी विषय पर पहले से कुछ अन्य जनहित याचिकाएँ भी लंबित हैं, जिन्हें एक साथ सुना जा सकता है। न्यायालय ने यह भी अनुशंसा की है कि हर जिले में स्थायी गौशालाओं और शेल्टर होम्स का निर्माण किया जाए, ताकि सड़कों पर आवारा पशुओं की संख्या को नियंत्रित किया जा सके।



