हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के वन्यजीव विंग ने शिमला में हिमालयन बर्ड एवियरी को बंद करने का आदेश दिया है। विभाग ने अपने कर्मचारियों को राज्य में आधा दर्जन चिड़ियाघरों में पक्षीशालाओं को सार्वजनिक आवाजाही के लिए बंद करने के आदेश भी जारी किए है। प्रधान वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ.अर्चना शर्मा ने बताया कि शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित हिमालयन एवियरी में एहतियाती कदम उठाए गए हैं, जहां हर दिन रविवार को पर्यटकों का तांता लगा रहता है। रविवार को एवियरी जनता के लिए बंद है, लेकिन सोमवार को हम बर्ड फ्लू के मद्देनजर अगले कुछ दिनों के लिए एहतियात के तौर पर किसी भी सार्वजनिक पहुंच की अनुमति नहीं देंगे।
डीएफओ (वन्यजीव) कृष्ण लाल ने कहा की शिमला में एवियरी में नौ विभिन्न हिमालयी प्रजातियों के लगभग 45 से 50 पक्षी हैं। इसी तरह राज्य में चिड़ियाघर, विशेष रूप से कांगड़ा जिले के गोपालपुर में पक्षियों के झुंड निगरानी में रहेंगे। अर्चना शर्मा ने कहा की कुफरी, रेणुका और गोपालपुर में तीन मान्यता प्राप्त प्राणि उद्यान और शिमला, सराहन और चैल में तीन एविएरी (तीतर) हैं। इस बीच 10 किमी के दायरे में कांगड़ा के उप-डिवीजनों से मिली रिपोर्ट के अनुसार पोंग डैम वेटलैंड साइट पर पक्षियों की गिनती 4,020 हो गई है।
उन्होंने बताया कि प्रभावित क्षेत्र में तैनात प्रोटेक्शन रेस्क्यू टीम (पीआरटी) अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट पर मृत पक्षियों के संग्रह और निपटान के लिए लगातार काम कर रही है। धामेटा में H5N1 वायरस के कारण मरने वाले पक्षियों की संख्या में कमी आई हैं, जो एक अच्छा संकेत है। यह संक्रमण चार जिलों कांगड़ा, मंडी, बिलासपुर और सिरमौर में कौवे के अलावा सिवाय पोंग डैम के आर्द्रभूमि तक सीमित है। राज्य सरकार ने पहले ही कांगड़ा में स्थानीय पोल्ट्री पक्षियों में संक्रमण फैलने की संभावना से इनकार कर दिया है, हालांकि लैब परीक्षणों की रिपोर्ट का भी इंतजार किया गया था।
डीसी कांगड़ा राकेश प्रजापति ने कहा कि, "मुर्गे में फैले वायरस की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन कौवे और कबूतर जैसे स्थानीय पक्षी संक्रमित पाए गए हैं। कौवे की मौत के बारे में चार जिलों, कांगड़ा, बिलासपुर, मंडी और सिरमौर से रिपोर्ट मिली है। इस बीमारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने और प्रसारित करने के लिए नगरोटा सूरियां में ऑपरेशन का एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जा रहा है। वायरस पक्षियों से पालतू पक्षियों तक या आगे इंसानों तक तो नहीं पहुंचा है। इसके लिए पोंग झील के आसपास के इलाकों में तरीके से पोल्ट्री के नमूनों का परीक्षण किया जा रहा है।