शिमला, 4 जुलाई, 2017 को स्कूल के घर जा रही अकेली लड़की गुडिय़ा से दुष्कर्म किया और बाद में उसकी हत्या कर नग्न शव जंगल में फेंक दिया। मुझे आज भी याद है जब 6 जुलाई का वो दिन जब गुड़िया का शव आईजीएमसी में पोस्टमार्टम के लिए लाया गया। जब तत्कालीन एसपी डीडब्ल्यू नेगी हमने कैमरे में पूछा तो उन्होंने बताया था कि गुड़िया की नग्न अवस्था में शव मिला है जो बुरी तरह से दरिंदो ने नोचा है। ये सुनकर रूह कांप गई कि हिमाचल जैसे शांत राज्य में भी ऐसी दिल दहला देने वाली तस्वीर देखने को मिलेगी।
ख़ैर मीडिया ने मामला उठाया तो शिमला की जनता सहित प्रदेश भर की जनता गुड़िया के लिए न्याय की एक स्वर में मांग करने लगी। कई तरह की अफवाहें उड़ने लगी। ऐसा भी सामने आया कि कुछ पहुंच वाले लोगों का इस रेप मर्डर में हाथ है। इसी बीच दुष्कर्म में लीपापोती करने के लिए कोटखाई में सूरज की हत्या हो गई। बस फिर क्या था… स्थानीय लोग भड़क गए और कोटखाई थाने को आग के हवाले कर दिया। विपक्षी दल भाजपा ने भी इस मुद्दे को खूब भुनाया। तत्कालीन वीरभद्र सरकार पर दवाब बढ़ा तो आनन फानन में सीबीआई की जांच के आदेश हो गए। सीबीआई करीब दो साल तक तांदी के जंगलों की ख़ाक छानती रही।
इसी बीच आईजी जैदी, एसपी डीडब्ल्यू नेगी, डीएसपी मनोज सहित आठ पुलिस कर्मियों को सूरज हत्या मामले में जेल की हवा खानी पड़ी। अब इन तीनों अफसरों को भी सरकार ने बहाल कर दिया है। सीबीआई भी एक चरानी को पकड़कर मामले से छुटकारा पा गई। सीबीआई की जांच भी आज तक किसी के गले नहीं उतर पाई। अब फॉरेंसिक जांच में जो सामने आ रहा है उससे सीबीआई जांच पर सवाल उठ रहे है। गुड़िया मामला फिर से ताज़ा हो रहा है। फ़र्क सिर्फ इतना है कि अब इस मामले से किसी को राजनीतिक लाभ नहीं दिख रहा है इसलिए शायद लोग सड़कों पर न आएं।
लेकिन तांदी के जंगलों में गुड़ियां की वो चीखें उसके माता पिता के अलावा शायद किसी को सुनाई नही देंगी। क्योंकि व्यवस्था बाहरी है, सरकार स्वार्थी हैं, कानून की आंखों में तो वैसे भी पट्टी बंधी हुई है। ऐसे में गुड़िया की सिसकियां, क्रंदन और दर्द किसी को न तो दिखाई देगा न सुनाई। बस गुड़िया अपने माता पिता को जिंदगी भर के आंसू दे गई। उन आंसुओ का हिसाब कोई नहीं ले पाएगा। अब तो न्याय की आस भी टूट चुकी है। ऐसे में सबकी निगाहें एक बार फिर सरकार पर टिकी हैं कि क्या मांग के बाद दोबारा मामले में जांच होगी या नहीं…???