<p>मां ज्वालामुख़ी के दर से कोई खाली जाए यह कभी नहीं हुआ। लेकिन आज जब महामारी के बीच मंदिर के कपाट बंद हैं तो मंदिर के लंगर औऱ रहन सहन पर टिके मजदूरों को कोई नहीं पूछता। अक्सर प्रशासन और समाज सेवी मदद की बात करते हैं लेकिन ये मदद कुछ जरूरतमंदों को नहीं मिलती। प्रशासन भी कई दफा अनदेखी कर देता है।</p>
<p>मामला है कांगड़ा के ज्वालामुखी का… यहां कुख प्रवासी रहते हैं जो पूरी तरह बेघर हैं। मंदिर में लंगर ख़ाकर और मंदिर के भवन या गेट वगैराह में सोकर अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। लेकिन जैसे ही कर्फ्यू लगा यह लोग अपने आशियाने का ख्वाब भी नहीं देख सकेय़ हालात यह है कि इन लोगों के पास रहने को छत नहीं है और यहां वहां सो रहे हैं। इससे भी बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि जहां यह लोग रह रहे है उससे कुछ ही दूरी पर SDM का कार्यालय है लेकिन उनकी नजर शायद इनपर न गई हो।</p>
<p>इन लोगों का कहना है कि इनके पास कुछ नहीं है और यह बेघर हैं। ऐसे में अगर यह सड़क पर जाते हैं तो पुलिस भगा देती है और इनको रहना भी अब मुश्किल हो गया है। ऐसे में जहां एक तरह जिला प्रसाशन जी तोड़ मेहनत में लगा हुआ है वहीं उपमंडल स्तर पर हालात क्या है यह तो लोग खुद ही बयां हो रहे हैं। मदद के नाम पर भी यहां कोई सुविधा नहीं मिल रही।</p>
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