<p>घर से लेकर खेत-खलिहान तक महिलाओं की भागीदारी आदिकाल से ही सबसे अधिक रही है। सुबह से लेकर रात सोने से पूर्व तक चूल्हा-चौंका, गौधन की सेवा, भोजन बनाना -परोसने, बर्तन साफ करना, वस्त्र धोना फिर खेतीबाड़ी।असल में औरत घर की निर्माता और संचालक है। भले ही पुरूष परिवार का मुखिया हो लेकिन औरत के बगैर परिवार अधूरा है। आजकल ऊपरी पहाड़ी और मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी से पूर्व मटर और आलू की बीजाई के लिए खेत खुदाई का काम जोरो पर है। </p>
<p>ऐसे में महिलाएं आस पड़ोस की महिलाओं के साथ भूमि खोदने के काम में भी सहायता करती हैं। कहीं अकेले-अकेले भी हल के अभाव मे "जुगाड़ तकनीक" के प्रयोग से भी खेत खुदाई के काम में अच्छी सफ़लता मिल रही है। घर हो चाहे खेत-खलिहान या मनरेगा के माध्यम से पंचायतों मे होने वाले रचनात्मक विकास काम, हर क्षेत्र में महिलाओं के योगदान से गांव-गांव का काया पलट हुआ है। </p>
<p>महिलाओं के बिना हमारे गांव-प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था असंभव है। क्योंकि हमारा देश ग्रामीण है और गांव के विकास की दूरी स्वाभिमान से पूर्ण मेहनती नारी है। सहकारी पद्धति और "जुगाड़ तकनीक" से खेत तैयार करती महिलाओं का यह चित्र विगत रविवार को नाचन निर्वाचन क्षेत्र दूर-दराज की मशोगल पंचायत के बरनोग-2 गांव में सांस्कृतिक अध्ययन यात्रा पर निकले डाक्टर जगदीश शर्मा, सुमित गुप्ता, पुनीत गुप्ता ने लिया है।</p>
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