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एनेस्थीसिया के लिए MCI से परमिशन न मिलना सरकार की लापरवाही: पुष्पेंद्र वर्मा

नवनीत बत्ता |

हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ ने टांडा मेडिकल कॉलेज में 13 एनेस्थीसिया की पोस्ट ग्रैजुएट सीट्स को MCI से परमिशन ना मिलना सरकार की बहुत बड़ी लापरवाही माना है। संघ के महासचिव डॉ पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि संघ पहले भी सरकार से अनुरोध करता आया है कि एमसीआई के साथ सरकार जो यह लुका छुपी का खेल निरीक्षण के समय खेलती है वह अच्छी बात नहीं है। उसका खामियाजा आज 13 एनेस्थीसिया की पोस्ट ग्रेजुएट सीट्स को खो देने से प्रदेश के डॉक्टरों को भुगतना पड़ रहा है।

संघ ने पहले ही समय-समय पर सरकार को सलाह दी थी के मेडिकल कॉलेजों में भर्ती के नियमों को एमसीआई की तर्ज पर रखा जाएय़ जैसे कि एमसीआई की शर्तों के हिसाब से असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट के लिए एसआर शिप केवल 1 साल की जरूरी होती है जबकि हमारी सरकार 3 साल की एसआर शिप मांगती है। इसकी वजह से बहुत से काबिल चिकित्सक असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती होने से रह रहे हैं और कॉलेजों में फैकल्टी की कमी हो रही है।

सरकार इसको आईजीएमसी और टांडा मेडिकल कॉलेज की स्थापित फैकल्टी से निरीक्षण के समय तबादले करके पूरा करना चाहती है और यही वजह रही कि टांडा मेडिकल कॉलेज में प्रदेश को 13 पीजी की सीट्स से हाथ धोना पड़ा। हालात यह हैं कि एक ओर सरकार 27 सीनियर रेसिडेंट की पोस्ट एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट में निकाल रही है और दूसरी ओर 13 पीजी सीटों से हाथ धोना पड़ रहा है। तो जब पीजी ही नहीं करेंगे डॉक्टर्स एनएसथीसिया में तो एसआर कहां से मिलेंगे एनएसथीसिया में।

इसी तरह संघ ने सरकार को डी एम और एम सी एच सुपर स्पेशलाइजेशन कोर्स  के लिए शर्तों को नरम बनाने की सलाह दी है ताकि ज्यादा से ज्यादा डॉ सुपर स्पेशलाइजेशन कर सकें। एक ओर तो सरकार एम्स दिल्ली से डॉक्टर्स बुलाकर आईजीएमसी में किडनी ट्रांसप्लांट करवा कर अपनी पीठ थपथपा रही है और दूसरी ओर नौजवान युवा डॉक्टर्स को एमसीएच और डीएम में एनओसी देने की शर्तों को कड़ा कर रही है। सरकार को पीठ्ठ तो तब थपथपानी चाहिए जब हमारे युवा डॉक्टर डीएम और एमसीएच बनकर आएं और वह यहां आकर किडनी ट्रांसप्लांट जैसे जटिल ऑपरेशन करें। लेकिन यह तभी संभव है जब युवा अवस्था में डॉक्टर्स को डीएम और एमसीएच करने के लिए एनओसी दी जाए।