राजधानी शिमला नगर निगम की हॉट सीट माने जाने वाली मेयर औऱ डिप्टी मेयर की कुर्सी के लिए भाजपा पार्षदों के बीच खूब घमासान मचा है। अंदरखाते भाजपा पार्षद अपनी-अपनी खिचड़ी पका रहे हैं। भाजपा के सभी पार्षद अपने आप को मेयर की दौड़ में बता रहे हैं। संजीव ठाकुर, शैलेन्द्र चौहान जैसे अनुभवी पार्षदों की दावेदारी तो गले से उतरती है लेकिन आरती, पूर्णमल और बिटू पन्ना जैसे पहली बार जीत कर आए भाजपा पार्षद खुलेआम अपनी दावेदारी जता रहे है जो पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा किए हुए हैं।
कुछ माह पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आई अर्चना धवन व मीरा शर्मा की मिला लिया जाए तो भाजपा के पास 34 में से मौजूदा समय में 19 के लगभग पार्षद हैं या यूं कहें कि भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है तो बड़ी बात नहीं होगी। लेकिन जिस तरह से दोनों पदों के लिए लॉबिंग हो रही है और एक दूसरे की टांग खींची जा रही हैं वह भी किसी से छिपी नहीं है। यदि दोनों पदों के लिए वोटिंग की नौबत आई तो खेल बिगड़ सकता है। आजकल तो कुछ शिक्षा मंत्री के धुर विरोधी माने जाने वाले पार्षद भी उनके चक्कर काट रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि यदि मेयर डिप्टी मेयर की कुर्सी तक पहुंचना है तो सुरेश भारद्वाज का आशीर्वाद बहुत ज़रूरी है।
इसी बीच अफवाहों का भी बाज़ार गर्म है । सियासी गलियारों में ये भी ख़बर है कि कुछ पार्षदों ने तो सरेआम मेयर व डिप्टी मेयर को हटाने के लिए मोर्चा खोल दिया है। दर्जन से ज्यादा पार्षदों ने दोनों को हटाने के लिए सीएम को पत्र भी लिखा है। दिसंबर मध्य तक मेयर डिप्टी मेयर का कार्यकाल है। ढाई साल तक एससी महिला के लिए मेयर का पद आरक्षित था अब अनारक्षित होने जा रहा है। सरकार के हाथ में है कि वह या तो मौजूदा मेयर और डिप्टी मेयर को बरकरार रखे या फिर दोनों को हटाकर नए चेहरे पदों पर बिठाए। लेकिन इस बगावत के बीच सरकार के लिए भी राह आसान नहीं होगी।
उधर, एक तरफ़ शिक्षा मंत्री हैं दूसरी तरफ संगठन जिनको ये फैसला लेना है। लेकिन तालमेल की यहां भी कमी है। यदि शिक्षा सुरेश भारद्वाज की चली तो मेयर का बदलना तय है क्योंकि मेयर के साथ उनके रिश्ते शुरू से ही ज्यादा मधुर नहीं रहे हैं। ऐसे में भाजपा के भीतर विरोध की चिंगारी सुलग रही है। इसलिए सरकार के सामने दिसंबर माह में कई चुनौतियां हैं। इसी माह भाजपा को नया अध्यक्ष मिलना है। दो नए कैबिनेट मंत्रियों के भी बनने की संभावना है। इस बीच मेयर और डिप्टी मेयर के पद को लेकर मची होड़ में कौन बाज़ी मरता है ये देखने वाली बात होगी? वैसे भी नगर निगम शिमला 35 साल में पहली मर्तबा निगम की सत्ता पर काबिज़ हुई है।