छात्र अभिभावक मंच ने जिला शिमला प्रशासन के एचआरटीसी बसों के बजाए निजी स्कूल बसें चलाने के निर्णय की कड़ी निंदा की है। मंच ने जिला प्रशासन को चेताया है कि अगर उसने इस निर्णय को लागू किया तो उसके खिलाफ निर्णायक आंदोलन होगा। मंच ने ऐलान किया है कि निजी स्कूलों की मनमानी लूट, भारी फीसों और निजी बस ऑपरेटरों, किताबों और वर्दी की दुकानों से मिलीभगत के खिलाफ मार्च के पहले सप्ताह में आंदोलन का बिगुल बजाया जाएगा।
मंच के सदस्यों ने कहा कि शिमला जिला प्रशासन निजी बस ट्रांसपोर्टर्स से मिलीभगत कर रहा है। इन निजी बस ट्रांसपोर्टर्स को फायदा पहुंचाने के लिए निजी स्कूलों के छात्रों औऱ अभिभावकों पर प्रतिमाह हज़ारों रुपये का आर्थिक बोझ लादा जा रहा है। अभिभावकों को जानबूझकर सोची समझी साजिश के तहत एचआरटीसी की बसों से वंचित किया जा रहा है। निजी स्कूल को सेवाएं देने वाली एचआरटीसी की बसों में प्रति छात्र प्रतिमाह अधिकतम किराया 900 रुपये था जबकि दो महीने के अंदर ही निजी बसें चलाने के फरमान के तहत इस अधिकतम किराया को 900 रुपये से बढ़ाकर 1800 से 2200 तक करने की कोशि़श की जा रही है।
यह सब कमीशनखोरी के उद्देश्य से किया जा रहा है। 2 महीनों में ही यह अधिकतम किराया 2 से ढाई गुणा ज़्यादा कैसे बढ़ रहा है। जिला प्रशासन के इस निर्णय से जहां एक ओर एचआरटीसी को प्रतिमाह लाखों रुपये का नुकसान होगा वहीं अभिभावकों की जेबों पर भी भारी बोझ पड़ेगा। इस से साफ पता चल रहा है कि यह निर्णय किस के हक में लिया जा रहा है। इस निर्णय से हज़ारों अभिभावकों को नुकसान होगा औऱ चन्द निजी बस ट्रांसपोर्टर्स को फायदा होगा। एचआरटीसी की दर्जनों बसें सड़कों पर खड़ी हैं लेकिन उनकी सेवाएं लेने के बजाए जिला प्रशासन निजी बस ट्रांसपोर्टर्स को महत्व दे रहा है। ऐसा करके वह छात्रों और अभिभावकों के हितों से खिलवाड़ कर रहा है।
संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि जिला प्रशासन माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 15 अप्रैल 2018 के बच्चों की सुरक्षा को लेकर दिए गए दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन कर रहा है। निजी बसों के हवाले बच्चों की सुरक्षा को सौंप रहा है और अपनी नैतिक जिम्मेवारी से पीछे हट रहा है। यह संविधान के अनुच्छेद 39 एफ के तहत बच्चों को प्राप्त नैतिक व भौतिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा वर्ष 2014 और सीबीएसई के वर्ष 2005 के दिशानिदेशों की भी अवहेलना है। जिला प्रशासन शिमला की इस कार्रवाई पर प्रदेश सरकार की खामोशी गम्भीर सवाल खड़ा करती है।
इससे शिक्षा माफिया की बू आती है। निजी स्कूल प्रबंधनों के दवाब में जिला प्रशासन शिमला निजी बस ऑपरेटर्स, किताबों औऱ वर्दी की दुकानों से कमीश्नखोरी को सुनिश्चित करने के लिए इस तरह के कदम उठा रहा है जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। शिक्षा में मुनाफाखोरी को सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ लादकर शिक्षा का अधिकार कानून 2009 और भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में गारंटीशुदा मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा के मौलिक अधिकार पर हमला कर रहा है औऱ छात्रों को उस से वंचित कर रहा है।