<p>छात्र अभिभावक मंच ने शिक्षा मंत्री के उस बयान की कड़ी निंदा की है जिसमें उन्होंने कहा है कि 23 मई को होने वाली कैबिनेट बैठक में निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस के साथ ही एनुअल चार्जेज लेने की छूट दे दी जाएगी। शिक्षा मंत्री का यह बयान निजी स्कूलों के लगभग 13 लाख छात्रों और अभिभावकों से सीधा धोखा है। मंच ने चेताया है कि अगर प्रदेश सरकार ने ट्यूशन फीस के साथ एनुअल चार्जेज छात्रों और अभिभावकों पर थोपेगी तो इसका कड़ा विरोध होगा।</p>
<p>मंच के संयोजक ने कहा कि इसके खिलाफ उन्होंने मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश सरकार को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया है। इस से साफ जाहिर हो गया है कि शिक्षा मंत्री की निजी स्कूल संचालकों के साथ हमदर्दी है और वह उनकी लूट तथा मनमानी को रोकने के इच्छुक नहीं हैं। ऐसे बयान देकर वह निजी स्कूल संचालकों को लूट की खुली इज़ाज़त दे रहे हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्री पर आरोप लगाया है कि वह पिछले 2 सालों से अभिभावकों की आवाज को अनसुना कर रहे हैं।</p>
<p>निजी स्कूलों की लूट को रोकने के लिए शिक्षा निदेशक द्वारा पिछले एक सा में 6 अधिसूचनाएं जारी की गईं लेकिन निजी स्कूलों ने इनमें से एक भी अधिसूचना को लागू नहीं किया। इस सब पर शिक्षा मंत्री की खामोशी हमेशा सवाल खड़ा करती रही है। पिछले सप्ताह 11 मई की शिक्षा मंत्री की शिक्षा अधिकारियों के साथ बैठक में भी शिक्षा निदेशालय ने अभिभावकों की समस्याओं के मध्यनज़र बेहतरीन सुझाव दिए थे, लेकिन शिक्षा मंत्री ने उन्हें मानने से इन्कार कर दिया। इसमें छात्रों से केवल ट्यूशन फीस वसूलने के प्रावधान है। शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों के संचालकों के दबाव में इस टयूशन फीस के साथ एनुअल चार्जेज को जोड़ने का फरमान सुना दिया जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।</p>
<p>विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि शिक्षा मंत्री महोदय को यह ध्यान रखना चाहिए कि एनुअल चार्जेज एडमिशन फीस का ही बदला हुआ रूप है, जिस पर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय वर्ष 2016 में पूर्णतः रोक लगा चुका है। निजी स्कूलों में ट्यूशन फीस के साथ ही भारी भरकम एनुअल चार्जेज वसूले जाते हैं जिनका भुगतान करना कोरोना महामारी के समय में अभिभावकों के लिए बेहद मुश्किल है। इसका एक उदाहरण संलग्न किया जा रहा है जिसमें स्वतः ही निजी स्कूलों की लूट और मनमानी स्पष्ट हो जाएगी।</p>
<p>उन्होंने हैरानी जताई है कि एक तरफ दिल्ली और हरियाणा की सरकार केवल ट्यूशन फीसें ले रही है। उत्तर प्रदेश की सरकार फीस बढ़ोतरी की निरस्त कर रही है, वहीं दूसरी ओर हिमाचल सरकार बिना किसी कक्षाओं के भारी भरकम एनुअल चार्जेज का बोझ अभिभावकों पर लाद रही है। शिक्षा मंत्री की निजी स्कूलों के साथ हमदर्दी इस बात से भी ज़ाहिर हो गयी है कि निजी स्कूलों में फीस को निर्धारित करने के लिए उन्होंने संचालकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस करना तो ज़रूरी समझा और उनके ही सुझावों को सरकार के निर्णय में बदलने का मन बना लिया। लेकिन फीसों का भुगतान करने वाले और सबसे बड़े स्टेक होल्डरज़ अभिभावकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस करना तो दूर उनके ज्ञापनों पर भी ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा।</p>
<p>शिक्षा मंत्री ने फीस को लेकर निजी स्कूल संचालकों के साथ जो वीडियो कॉन्फ्रेंस की वह गैर कानूनी है क्योंकि संविधान, शिक्षा का अधिकार कानून 2009 ,मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 2014 की अधिसूचना, उच्च और सर्वोच्च न्यायालय कहीं भी इसकी कोई इज़ाज़त नहीं देते हैं। इसके बावजूद भी शिक्षा मंत्री ने इनके साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस करके गैर कानूनी काम किया है। इन सब से स्पष्ट हो गया है कि निजी स्कूलों को सरकार के स्तर से लूट और मनमानी की हरी झंडी है जिसे छात्र अभिभावक मंच किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं करेगा।</p>
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