भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी की शोध टीम ने योगी वेमना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर एक नया फोटोकैटलिस्ट विकसित किया है जो सूर्य की रोशनी की मदद से पानी से हाइड्रोजन प्राप्त करने के साथ पानी का प्रदूषण भी दूर करेगा। इस शोध के नतीजे कैमफोटोकैम नामक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं। शोध टीम में डॉ. वेंकट कृष्णन, एसोसिएट प्रोफेसर (रसायन विज्ञान), स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी के साथ उनके शोध विद्वान श्री आशीष कुमार, श्री अजय कुमार; और योगी वेमना विश्वविद्यालय के डॉ. एम.वी. शंकर एवं उनके शोध विद्वान श्री वेम्पुलुरु नवकोटेस्वर राव शामिल हैं।
फोटोकैटलिसिस पर 1911 में आई पहली रिपोर्ट के बाद से यह वैज्ञानिक उत्सुकता का विषय रहा है क्योंकि इसमें सूर्य की रोशनी की मदद से कई उपयोगी उत्पाद प्राप्त करने की संभावना है। इस प्रक्रिया में प्रकाश और कैटलिस्ट के संयुक्त प्रयोग से रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज किया जाता है। ‘‘अगर पेड़-पौधे सूरज की रोशनी का उपयोग कर जीवनदायी रासायनिक प्रतिक्रियाएं कर कर सकते हैं तो यह प्रयोगशाला में क्यों नहीं किया जा सकता है?’’ डॉ. वेंकट कृष्णन इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ रहे हैं।
इस शोध में शोधकर्ताओं ने नए और बहु-उपयोगी नैनोकम्पोजिट फोटोकैटलिस्ट की सीरीज़ डिजाइन की है। इसके लिए कैल्शियम टाइटेनेट के मेसोक्रिस्टल्स को मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड युक्त और कम ग्रेफीन ऑक्साइड वाले सल्फर परमाणुओं को आपस में जोड़ा है। फोटोकैटलिटिक प्रतिक्रिया का विशेष और उपयोगी उदाहरण पानी का हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजन है। यद्यपि इस प्रतिक्रिया को 1972 की शुरुआत में ही फुजिशिमा और होण्डा ने प्रदर्शित किया था लेकिन इस प्रक्रिया की अक्षमता इसके व्यावहारिक उपयोग की प्रौद्योगिकी विकसित करने में बाधक रही है। पर वर्तमान शोध में शोधकर्ताओं ने फोटोकैटलिस्ट्सि से पानी के जैविक प्रदूषकों को भी दूर किया है।
आईआईटी मंडी की टीम इस शोध कार्य से नई दिशा मिलने को लेकर उत्साहित है। टीम का दृढ़ विश्वास है कि उनकी रणनीति से अन्य मेसोक्रिस्टल के गुणों और प्रदर्शन को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न उपयोगों के लिए कम लागत के कैटलिस्ट बनेंगे और ये कई कार्य करेंगे।