आधुनिक विज्ञान के युग में आटे अनाज़ को पीसने के लिए कई तरह की मशीनें आ गई है। यहां तक कई लोगों ने तो अपने सुलियत के लिए छोटी चक्की अपने घरों में ही खरीद ली है। जिसमें अपने गेहूं और मक्का इत्यादि पीसते हैं। लेकिन बिजलीं से चलने वाली इन मशीनों में आटा पीसने के बाद उसके स्वाद और पौष्टिकता में कमी आ जाती है।
यही वजह है कि सिरमौर के कई ग्रामीण क्षेत्रों में पुरातन पानी से चलने वाले घराट अभी भी अपनी जगह बनाए हुए है। ये घराट नालों खड्डों के कम पानी के बहाब से भी चल जाते है। ऐसे नालों की पहाड़ी क्षेत्रों में कमी नही है। ऐसे में हिमाचल के कई क्षेत्रों में अभी भी ये घराट देखने को मिल जाते है।
ये सिरमौर जिला के रघुवीर सिहं चौहान का घराट है उनका कहना है कि वह पूर्वजों के जमाने से घराट चला रहे हैं। इस घराट में लोग गेहूं, मक्की जौं और हल्दी आदि पिसवाने लाते है। घराट में पिसे हुए आटे की गुणवत्ता बनी रहती है और इसका आटा पोष्टिक व निरोग माना जाता है।