<p>स्वच्छ शिमला की दुहाई देने वाले नगर निगम शिमला की सफाई व्यवस्था की पोल जगह-जगह फैली गदंगी वयां कर रही है। घर- घर से कूड़ा इक्कठा करने की योजना को सफल बताकर अपनी पीठ थपथपाने वाले नगर निगम के नाक तले कूड़े के अंबार लगे हुए हैं। आलम ये है कि गली मोहल्लों से लेकर नालों तक कूड़े से भरे पड़े है। यहां तक कि शिमला के जंगलों में भी लोगों द्वारा कूड़ा फैंका जा रहा है।</p>
<p>नगर निगम शिमला सैहब सोसाइटी के माध्यम से घर-घर से कूड़ा उठाने के लिए 50 रुपये प्रति घर लेती है जबकि व्यवसायिक दाम 500 या इससे भी ज्यादा है। बाबजूद इसके शिमला को गंदगी से निजात क्यों नहीं मिल पा रही है?</p>
<p>अमृत सिटी के बाद शिमला को स्मार्ट सिटी में भी शामिल कर लिया गया है। लेकिन राजधानी शिमला की सफाई व्यवस्था, पानी की नियमित सप्लाई , सीवरेज और अन्य मूलभूत सुविधाओं से आज भी जूझना पड़ रहा है। शिमला के भविष्य के लिए कोई ठोस प्लान अभी तक किसी पार्टी ने नहीं बनाया है।</p>
<p>करोड़ों की ग्रांट शिमला को पहले भी मिल चुकी है और अब भी मिल रही है। पैसे का खुलकर दुरुपुयोग शिमला शहर में होता रहा है। कभी टाइल लगा ली जाती है, फिर उसे उखाड़कर संगमरमर का पत्थर लगा दिया जाता है, पुरानी मजबूत ग्रिल उखाड़कर नई घटिया ग्रिल लगा दी जाती है। जब भी शिमला के लिए कोई ग्रांट आई इसी तरह से पैसा पानी की तरह बहाया गया। पूछने वाला कोई नहीं है, जबाबदेही किसी की नहीं है, बस जिसकी जेब भर रही है वह खुश है शहर दुःखी है, वैसे भी जनता तो वोट बैंक ही है।<br />
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