हिमाचल प्रदेश में कई अद्भुत तीर्थ स्थल हैं जोकि किसी पहचान के मोहताज नहीं है। ऐसा ही तीर्थ स्थल पौंग झील के मध्य में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान निर्मित बाथू की लड़ी है जोकि पौंग झील का जलस्तर बढ़ने के कारण 6 माह झील में समाया रहता है और 6 माह तक पानी के बाहर आता है। इस स्थल पर एक सीढ़ीनुमा ऊंची गोलाकार मीनार खड़ी है और साथ में मन्दिर, प्रवेशद्वार, निकासीद्वार और पास में एक गहरा कुआं भी है। जब यह तीर्थ स्थल पानी से बाहर होता है तो काफी संख्या में पर्यटक इस स्थल को देखने आते हैं लेकिन बहुत ही कम लोग इसका इतिहास जानते हैं।
बताया जाता है कि इस तीर्थ स्थल का निर्माण पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान स्वर्ग को जाने के लिए किया गया था। इस बाथू की लड़ी का निर्माण एक ही रात में करना था तो पांडवों ने 6 माह की एक रात बनाकर इसका कार्य शुरू किया। स्वर्ग तक पहुंचने के लिए अभी अढ़ाई पौढियां ही शेष बची थीं कि साथ ही में कोल्हू पर तेल निकाल रही तेलिन चिल्ला कर बोली कि मैंने 6 माह का काम कर लिया है लेकिन रात खत्म ही नहीं हो रही है। इसके साथ ही सीढ़ियां गिर गईं और पांडव इसको अधूरा छोड़कर आगे चलते बने।
पांडवों द्वारा इसके अंदर शिव मंदिर भी आराधना के लिए बनाया गया था। पेयजल व स्नानादि के लिए कुआं निर्मित किया था। इस स्थल में पौंग बांध बनने से पहले द्रोपदी के हाथों से कढ़ाई की गई शॉल भी थी और एक काफी बड़ा गेहूं का दाना भी था। सदियों पहले निर्मित इस तीर्थ स्थल के सालभर में 6 माह तक पानी के अंदर समा जाने के उपरांत भी इसकी नाकाशी को कोई फर्क नहीं पड़ा है। तीर्थस्थल को देखने के लिए काफी पर्यटक आते हैं लेकिन इसको पर्यटक की दृष्टि से विकसित नहीं किया जा रहा है तथा धीरे-धीरे तीर्थस्थल अपने अस्तित्व को खो रहा है।